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'''चिमनभाई पटेल''' (3 जून 1929 - 17 फरवरी 1994) भारत के एक राजनेता थे जो [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] और [[जनता दल]] के साथ जुड़े थे। वे [[गुजरात]] के मुख्यमंत्री भी रहे।
गुजरात का वो मुख्यमंत्री जिसने इंदिरा गांधी से बगावत करके कुर्सी पर कब्ज़ा कर लिया था
चिमनभाई पटेल:
 
==सरकार गिराने और सरकार बनाने में सबसे माहिर खिलाड़ी==
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इस चुनाव पर नज़र रखने के लिए स्वर्ण सिंह खुद गुजरात गए. गांधी नगर में कांग्रेस के सभी 139 विधायकों को इकठ्ठा किया गया. मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार थे, चिमनभाई पटेल और कांतिलाल घिया. सभी मत इकट्ठे करने के बाद स्वर्ण सिंह बैलट बॉक्स को वहां खोलने की बजाय दिल्ली लेकर चले आए थे. यह कांग्रेस के इतिहास में पहली बार हो रहा था. इससे पहले मुख्यमंत्रियों का चुनाव इंदिरा गांधी के हाथ में होता था. विधायक दल रस्मी तौर पर उस पर निर्विरोध मोहर लगाता था.
 
;सरदार स्वर्ण सिंह और चिमनभाई पटेल
 
सरदार स्वर्ण सिंह और चिमनभाई पटेल
दिल्ली में आने के बाद बैलट बॉक्स खोले गए. अधिकारिक तौर पर चिमनभाई पटेल को महज सात वोट से विजयी घोषित किया गया. हालांकि उस समय के कई पत्रकारों का मानना है कि असल में जीत कांतिलाल घिया की हुई थी, लेकिन इंदिरा के कहने पर कुर्सी चिमनभाई की तरफ खिसका दी गई. इसकी एक वजह यह भी थी कि चिमनभाई पटेल के उद्योगपतियों के साथ संबंध बहुत गाढ़े थे. वो फण्ड उगाहने के हुनर में माहिर आदमी माने जाते थे. 1974 की शुरुआत में उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे. ऐसे में इंदिरा को चिमनभाई की सख्त जरूरत थी. दूसरा इंदिरा चिमनभाई को सबक भी सिखाना चाहती थीं.
 
17, जुलाई 1973 के दिन चिमनभाई पटेल ने गुजरात के पांचवे मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. इसके बाद वो इंदिरा गांधी से मिलने एक बार फिर दिल्ली आए. यह राजनीतिक शिष्टाचार के चलते की गई मुलाकात थी. मुलाकात वैसी ही थी, जैसी इसके होने की उम्मीद की जा रही थी. इंदिरा ने चिमनभाई को चाय पिलाई. उनका हाल-चाल लिया और उनको घर की देहरी तक छोड़ने के लिए आईं. इस मुलाक़ात के बारे में एक दिलचस्प वाकए का बयान विजय सांघवी अपनी किताब “The Congress:From Indira to Sonia” में करते हैं.
 
;सांघवी की किताब का कवर
सांघवी की किताब का कवर
जब चिमनभाई इंदिरा से मिलकर लौटे तो उनकी मुलाक़ात गुजरात सरकार में वित्तमंत्री अमूल देसाई से हुई. देसाई ने पटेल से पूछा कि इंदिरा का मूड कैसा था? चिमनभाई ने जवाब दिया कि वो ठीक मूड में थी और उन्हें गेट तक छोड़ने के लिए भी आईं. अमूल देसाई ने बाद में सांघवी से कहा कि चिमनभाई का जवाब सुनकर उन्होंने मन में सोचा, “वो तुम्हें दरवाजे तक छोड़ने नहीं आई थी बल्कि देखने आई थी कि जब वो चिमनभाई के पिछवाड़े पर लात मारेगी तो वो कहां जाकर गिरेंगे.”
 
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इंदिरा ने 1971 का चुनाव गरीबी हटाओ के नारे के साथ जीता था. यह नारा भी जुमला ही साबित होता जा रहा था. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की वजह से देश पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ा था. आर्थिक संकट हर दिन गहराता जा रहा था. खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें अासमान में पहुंच गई थी. सरकार ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए लोगों की भलाई के लिए चलाई जा रही योजनाओं में कटौती शुरू की.
 
;फखरुद्दीन अली अहमद उस समय खाद्य मंत्री हुआ करते थे.
फखरुद्दीन अली अहमद उस समय खाद्य मंत्री हुआ करते थे.
कटौती की सबसे बड़ी गाज गिरी गुजरात पर. गुजरात को केंद्र की तरफ से दिए जाने वाले गेहूं के कोटे में भारी कटौती की गई. वजह बताई गई, आर्थिक तंगी. जहां 1972 तक गुजरात को हर साल सार्वजानिक वितरण प्रणाली के लिए एक लाख टन गेहूं भेजा जाता था, उसे काटकर 55,000 टन पर ले आया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार में गेहूं की कीमतें अासमान छूने लगीं. जहां राशन की दुकान पर मिलने वाले गेहूं की कीमत 70 पैसे प्रति किलो थी, बाजार में यह पांच रुपए से ऊपर पहुंच गई. बढ़ती महंगाई के कारण लोगों का असंतोष लगातार बढ़ने लगा. सितंबर 1973 में तत्कालीन खाद्यमंत्री फखरुद्दीन अली अहमद ने बाकायदा आदेश जारी करके इस कटौती की घोषणा की. खाद्य आपूर्ति में इस किस्म की कटौती सिर्फ गुजरात पर लादी गई.
 
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अहमदाबाद में एक इलाका है नवरंगपुरा. साल 1948. आजाद भारत में नई-नई संस्थाओं की नींव रखी जा रही थी. अहमदाबाद के एक सेठ थे, कस्तूरभाई. कस्तूरभाई अपने पिता के नाम पर एक कॉलेज खोलना चाहते थे. उन्होंने अपनी अंटी से 25 लाख रुपए निकाले और तीन हैक्टेयर के करीब की जमीन सरकार को दी. यहां एक नया इंजीनियरिंग कॉलेज खोला गया. नाम रखा गया ‘लालभाई धनपालभाई कॉलेज’.
 
;अहमदाबाद का मशहूर एल.डी. कॉलेज
अहमदाबाद का मशहूर एल.डी. कॉलेज
1973 के अक्टूबर में इस कॉलेज के छात्रों के सामने नया मेस बिल रखा गया. इसमें अनाज की बढ़ती कीमतों का हवाला देते हुए बिल में 30 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी गई थी. बाद में आए सर्वे से साफ़ हुआ कि अपना मेस बिल भरने के लिए 22 फीसदी छात्र कर्ज लेने पर मजबूर हुए. 52 फीसदी छात्रों ने एक समय खाना बंद कर दिया. दिसंबर के महीने में छात्रों के सब्र का बांध टूट गया. 20 दिसम्बर के दिन एल.डी. कॉलेज के छात्रों ने हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया. तीन जनवरी को एल.डी. कॉलेज के सामने ही बने गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्र भी हड़ताल पर चले गए. इसके बाद कामगार यूनियन, डॉक्टर्स, अध्यापक और समाज के दूसरे तबके के लोग भी इससे जुड़ने लगे. यह आंदोलन भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ शुरू हुआ था. मध्यमवर्ग इन समस्याओं से जूझ रहा था. देखते ही देखते पूरे गुजरात में छात्रों के नेतृत्व में चलने वाले इस आंदोलन ने तेजी पकड़ ली. चिमनभाई पटेल को जनता ने नया नाम दिया, “चिमन चोर”.
 
;गुजरात नव निर्माण आंदोलन के दौरान सरकारी बस पर चढ़ कर प्रदर्शन करते छात्र
गुजरात नव निर्माण आंदोलन के दौरान सरकारी बस पर चढ़कर प्रदर्शन करते छात्र
10 जनवरी 1974 को छात्रों ने गुजरात बंद की घोषणा की. अहमदाबाद और वडोदरा में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. गुजरात में 33 तहसीलों/जिलों में पुलिस ने लाठीचार्ज किया. 25 जनवरी को दूसरी राज्यव्यापी हड़ताल हुई. धारा 144 लागू कर दी गई. 60 से ज्यादा कस्बों में कर्फ्यू लगा दिया गया. इसके जवाब में लोग अपनी छतो पर चढ़ गए और थाली बजाकर विरोध करने लगे. जगह-जगह भ्रष्टाचार विरोधी गरबा होने लगा.