"महायान": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 5:
मूल बुद्ध थेरवादी, श्रावकवादी बुद्ध कहे जाने लगे.सरी शाखा का नाम [[थेरवाद]] है। महायान बुद्ध धर्म [[भारत]] से आरम्भ होकर उत्तर की ओर बहुत से अन्य [[एशिया|एशियाई देशों]] में फैल गया, जैसे कि [[चीन]], [[जापान]], [[कोरिया]], [[ताइवान]], [[तिब्बत]], [[भूटान]], [[मंगोलिया]] और [[सिंगापुर]]। महायान सम्प्रदाय कि आगे और उपशाखाएँ हैं, जैसे ज़ेन/चान, पवित्र भूमि, तियानताई, निचिरेन, शिन्गोन, तेन्दाई और [[तिब्बती बौद्ध धर्म]]।<ref name="ref46mufom">[http://books.google.com/books?id=OkEy4_yTr-cC Establishing a pure land on earth: the Foguang Buddhist perspective on modernization and globalization], Stuart Chandler, University of Hawaii Press, 2004, ISBN 978-0-8248-2746-5, ''... The Hinayana school is identified with the Theravada tradition, which is practiced in Thailand, Sti Lanka, Myanmar, etc. The Mahayana school, by contrast, is seen as having taken root in China, Japan, Korea, and Tibet ...''</ref>
[[Image:Dharma Flower Temple Avalokitasvara Bodhisattva.jpg|center|thumb|500px|[[अवलोकितेश्वर]] ([[चीन]])]]
==महायान पंथ का उदय==
बुद्ध इस धरती पर अस्सी साल रहे. बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में तथा महापरिनिर्वाण 483 ई.पू. में हुआ था. उन्होंने स्वयं अपने धम्म का 45 साल तक प्रचार-प्रसार किया. करीब आधी शताब्दी, उन्होंने भ्रमण कर-कर के लोगों को अपने धम्म की रौशनी दी. बुद्ध धम्म के कारण अंध-विश्वास, असमानता, अज्ञान, हीनता कई शताब्दियों तक यहाँ से दूर रहे. बुद्ध ने ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म में कभी विश्वास नहीं किया. लेकिन उन्होंने समाज को योजनाबद्ध तरीके से समझाया कि दुःख से कैसे मुक्ति पाई जा सकती है. उन्होंने लोगों को संगठित किया, जो छिन्न-भिन्न पड़े हुए थे. बुद्ध ने वैज्ञानिक, आधिकारिक, वास्तविक और तार्किक ढंग से लोगों को समझाया कि वे कैसे दुःख से मुक्ति पाकर प्रसन्न और शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं. इसके लिए उन्होंने कभी स्वयं को मोक्षदाता, पैगम्बर, ईश्वर या देवता नहीं कहा. उन्होंने कभी निरर्थक प्रदर्शन या विज्ञापन नहीं किया.
बुद्ध ने इस बात पर जोर दिया कि किस तरह मानव दुःख के खतरों से दूर रह सकता है. उन्होंने हमेशा मनुष्य की तरह शिक्षा दी, और दुखों को दूर करने के लिए मानवीय तरीकों को इस्तेमाल किया. उन्होंने दुःख को समूल नष्ट करने का मार्ग बताया. समझदार, बुद्धिमान, तर्कशील व्यक्ति की तरह उन्होंने बताया कि धम्म के मार्ग पर चलकर आदमी कैसे तेजस्वी और भद्रपुरुष बन सकता है. विशुद्ध दार्शनिक की तरह सत्य के मार्ग पर उनका प्रवचन, उनका आत्मविश्वास इतना परम था कि लोग उनके बताये धम्म को मानने और धम्म-मार्ग पर चलने के लिए विवश हो जाते थे. सत्य स्वयं शक्तिवान होता है, इसको किसी पैगम्बर, ईश्वर या किसी देवदूत की आवश्यकता नहीं होती. सत्य को किसी ईश्वर या पैगम्बर की सिफारिश की जरूरत नहीं होती. सत्य अपने पैरों पर स्वयं चलता है. सत्य को किसी के सहारे की जरूरत नहीं होती. बुद्ध ने लोगों को उनके जीवन में आने वाले दुखों को दूर करने के उपाय बताये. उनके प्रवचनों में कोई अलौकिक या गूढ़ता नहीं थी, बुद्ध ने जीवन की वास्तविक कठिनाइयों और उनके समाधान को बड़े पारदर्शी और भरोसेमंद तरीके से रखा. उन्होंने “जन-कल्याण” तथा “अत्त दीप भव” पर लोगों को व्यवहारिक ज्ञान दिया.
बुद्ध की बताई बातें लोग पूरी तरह समझते थे. बहुत लोगों ने वर्णभेद के कारण उत्पन्न अपनी जिन्दगी के तमाम दुखों से छुटकारा पा लिया था. बुद्ध की वजह से उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का मौक़ा मिला था. लोग वैदिक धर्म के वर्णाश्रम के विपरीत बग़ावत पर उतर आये. लोगों ने महसूस किया कि बुद्ध के कारण मिले, इस स्वतंत्र वातावरण में उनके काम करने के हुनर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. बुद्ध के कारण लोगों में आत्म-स्वाभिमान बढ़ा. बहुत से लोगों ने वैदिक धर्म द्वारा बताये अपने परम्परागत कार्य को छोड़ दिया. बहुत से लोगों की जिन्दागी उनके सतत और कठोर उद्यम / चेष्टा से प्रकाशित हो उठी. बहुत से लोगों ने जाति के बोझ को उतार फेंका. एक नृत्यांगना “शीलवती” का पुत्र “जीवक” प्रसिद्ध और निपुण वैद्य बन गया, स्वच्छक सुनीत, उपाली नाई, अछूत सोपक और सुप्रिया, निम्नजाति सुमंगल, कुष्ठ-रोग प्रभावित सुप्रबुब्भा तथा और भी बहुत से लोगों ने धम्म अंगीकार कर लिया. बुद्ध ने डाकू अंगुलिमाल, बहुत से अनाथ और अवर्ण लोगों को धम्म-दीक्षित किया. इन सभी का जीवन बुद्ध के कारण प्रकाशित हो उठा.
ये वैदिक धर्म की मान्यताओं के विरुद्ध न्याय, सत्य, मानवता का धम्म-युद्ध था. धम्म के फैलने से असमानता को अपना आदर्श मानने वाले वैदिक लोग छिन्न-भिन्न होने लगे. इन लोगों ने अपने परम्परागत वैदिक जीवनशैली को नहीं छोड़ा. इन लोगों को ये महसूस हुआ कि बुद्ध और धम्म उनके लिए खतरनाक हैं. फलस्वरूप बुद्ध के जीवनकाल में ही उनके कई शत्रु बन गए. छंदा तथा उपनंदा बुद्ध के प्रति सदा शत्रुतापूर्ण रहे. देवदत्त बुद्ध की ख्याति को देखकर बुद्ध के प्रति और अधिक ईर्ष्यालु हो गया. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु की मदद से देवदत्त ने बुद्ध को मरवाने के कई असफल प्रयास किये. लेकिन देवदत्त भिक्खु संघ को विभाजित करने में सफल हुआ. बुद्ध ने लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलने के लिए हमेशा जोर दिया. नैतिक मूल्यों पर चलना कई लोगों को कठिन लगा. नैतिक मूल्यों पर चलना कई लोगों को सजा की तरह लगा. कई लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलना अपनी आज़ादी में बाधक लगा. ईश्वर और आत्मा में विश्वास न करने की वजह से कुछ लोगों को धम्म रास नहीं आया. सुभद्र उनमें से एक था जिसे बुद्ध की मृत्यु से प्रसन्नता मिली.
 
अब वे लोग संगठित होने लगे, जिन्हें धम्म पसंद नहीं आया था. उन्होंने मूल धम्म त्यागकर “महासांघिक पंथ” बना लिया. “महासांघिक पंथ” को “महायान पंथ” में बदल दिया गया. ये कार्य बुद्ध के महापरिनिर्वाण के करीब 100 वर्ष बाद इन लोगों द्वारा वैशाली में आयोजित दूसरे बौद्ध अधिवेशन में किया गया. महायान उन लोगों ने पैदा किया जिन्हें बौद्ध धम्म रास नहीं आया. महायानियों द्वारा बुद्ध के मूल मिशन को एक तरफ रख दिया गया. महायानियों ने त्रिपिटक की पाली की मूल इबारत को संस्कृत में अनुवादित करके आम लोगों को अपठनीय बना दिया. इस तरह धीरे-धीरे पाली साहित्य नष्ट करके इन लोगों ने पाली भाषा को निर्बल बनाकर धम्म को विकृत किया.
बुद्ध ने लोगों को बताया कि वे इंसान हैं अतः उन्हें ईश्वर, पैगम्बर या देवदूत न मानें. लेकिन महायानियों ने उन्हें भगवान बना दिया. महायानियों ने बुद्ध को नास्तिक बुद्ध से आस्तिक बुद्ध बना दिया. बुद्ध पूजा और उपासना के विरुद्ध थे, लेकिन महायानियों ने उनकी पूजा उपासना प्रारंभ कर दी. दूसरी शताब्दी में एक ब्राह्मण नागार्जुन ने महायान अपनाया और बुद्ध का एक विशाल स्मारक बनवाया. तीसरी शताब्दी में पेशावर के एक ब्राह्मण पुत्र असंग ने महायान अपनाया और महायान को योगविद्या से जोड़ दिया. महायान का जन्म हालाँकि आन्ध्र प्रदेश में हुआ लेकिन वह शीघ्र ही पंजाब, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, सिक्किम, भूटान, ताइवान, नेपाल में फैल गया, जहाँ मूर्तिपूजा, ध्यान, तंत्र साधना महायान का हिस्सा बन गए. शून्यवाद जो बाद में हिन्दुवाद का अद्वैतवाद बना, (ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है, नागार्जुन की देन है. महायानियों ने न सिर्फ बुद्ध को ईश्वर माना बल्कि हिन्दुओं के ब्रह्मा, विष्णु, महेश, कार्तिके, चामुंडा, गणपति, महाकाल आदि देवों की पूजा भी जारी रखी. महायानियों ने हिन्दुओं के नौग्रह, यक्ष, गंधर्व, विद्याधर आदि की पूजा भी शुरू कर दी. इस तरह महायान को दैविक और चमत्कारिक विश्वासों में फंसा दिया गया.
 
बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद जातक कथाएं लिखी गयीं. यह कहानियाँ बुद्ध के पिछले जन्मों की कहानियां हैं. बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की सारी कहानियाँ बता रहे हैं. उन्हीं का संकलन जातक-कथायें कहा जाता है. जातक कथा के अंतर्गत राजा दशरथ, राम, सीता, युधिष्ठिर, विदुर, कृष्ण आदि पात्र रामायण और महाभारत के भी हैं. जातक कथा ईसवी दूसरी शताब्दी में लिखी गयीं थीं. बुद्ध के मूल अऩीश्वरवाद, अनात्मावाद को महासांघिकों और महायानियों द्वारा निकाल दिया गया. बोधिसत्व की अवधारणा महायान पंथ से आयी और जातक कथायें केवल बोधिसत्व की हैं. जातक कथायें बुद्ध के मूल शिक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं. बुद्ध आत्मा में विश्वास नहीं करते थे. तो फिर वे क्यों पुनर्जन्म में विश्वास करने लगे? और जातक कथायें हिंदू धर्म के पुनर्जन्म के सिद्धांत को प्रतिस्थापित करती हैं. बुद्ध से पहले ब्राह्मण धर्म का काफी प्रभाव था. इसी प्रभाव को पूर्णतः खत्म किया जाना ही बुद्ध धम्म क्रांति का आदर्श वाक्य था. ऊंची जाति के लोग जिन्होंने बौद्ध धर्म को गले लगा लिया था, वे बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध की मूल शिक्षाओं पर नहीं चल सके. नतीजन उन्होंने जातक कथायें बनायीं. वृक्ष, देवता, यक्ष, भगवान की पूजा को अधिक महत्व और दर्जा मिला. अवदंशातक और दिव्यावदान पुस्तकों में बुद्ध के पिछले जन्मों की कहानियाँ हैं. ललितवित्सर, जातक कथा, बुद्धचरित और सद्धम्मापुन्डारिक महायान के ग्रंथ हैं.
में सुमेध ब्राह्मण को स्वयं बुद्ध बताया गया. मोक्ष प्राप्ति के लिये वह तपस्या करने हिमालय गया. हवा में उड़ते समय, वह अमरावती कस्बा पहुंचा जहां उसे दीपांकर बुद्ध के दर्शन हुये. दीपांकर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और इस आशीर्वाद से सुमेध ब्राह्मण बोधिसत्व हुआ. कई जन्मों के बाद उन्हें अततः महामाया और शुद्धोधन के माध्यम से जन्म लेने का अवसर मिला. वह गौतम बुद्ध हैं. कुछ कहानी ये शो करने के लिये पैदा की गयीं कि प्रसिद्ध व्यक्ति सिर्फ ब्राह्मण समुदाय से ही पैदा हो सकते हैं. प्राचीन काल में महायान पंथियों ने बुद्ध को भी ब्राह्मण बना दिया और ब्राह्मणों को सर्वोच्च बताया. उस समय कोई विरोध न कर सका क्योंकि शिक्षा के सारे अधिकार ब्राह्मणों के पास थे, अतः इस षड्यंत्र का किसी को पता नहीं चला.
 
जातक कथाओं के सभी प्रमेय बुद्ध के मूल उपदेशों से भिन्न हैं. जातक कथायें विज्ञान विरोधी और बुद्ध विरोधी हैं. जातक कथाओं को ब्राह्मण धर्म के प्रभाव और मूल्यों को पुनःस्थापित करने के लिये लिखा गया है. जातक कथाओं की उत्पत्ति महासांघिक लोगों द्वारा की गयी. जातक कथाओं को तब तक लिखा जाता रहा जब तक महासांघिक शक्तिशाली नहीं हो गये. महासांघिकों ने बुद्ध के मूल नास्तिक और अनीश्वरवादी सिद्धान्त के विनाश की आवश्यकता को समझा. बुद्ध के मूल शिष्य संसार को हकीकत समझ रहे थे. जबकि महायानियों ने संसार के अस्तित्व को नकार दिया. उन्होंने कहा आध्यात्मिक ज्ञान के हिसाब से विश्व और उसके सारे भौतिक पदार्थ अस्तित्वहीन हैं, ये संसार वृहद् शून्य है. संसार काल्पनिक और व्यर्थ है. महायान पंथ ने एक जातक कथा में ये दर्शाया है कि ब्राह्मण कैसे बौद्धों से उच्च हैं.
 
एक जातक कथा में सुमेध ब्राह्मण को स्वयं बुद्ध बताया गया. मोक्ष प्राप्ति के लिये वह तपस्या करने हिमालय गया. हवा में उड़ते समय, वह अमरावती कस्बा पहुंचा जहां उसे दीपांकर बुद्ध के दर्शन हुये. दीपांकर ने उन्हें आशीर्वाद दिया और इस आशीर्वाद से सुमेध ब्राह्मण बोधिसत्व हुआ. कई जन्मों के बाद उन्हें अततः महामाया और शुद्धोधन के माध्यम से जन्म लेने का अवसर मिला. वह गौतम बुद्ध हैं. कुछ कहानी ये शो करने के लिये पैदा की गयीं कि प्रसिद्ध व्यक्ति सिर्फ ब्राह्मण समुदाय से ही पैदा हो सकते हैं.
 
== थेरवाद और महायान में अंतर ==