"बंगाल का नवजागरण": अवतरणों में अंतर
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उन्नीसवीं सदी में और बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों के [[बंगाल]] में हुए समाज सुधार आंदोलनों, देशभक्त-राष्ट्रवादी चेतना के उत्थान और साहित्य-कला-संस्कृति में हुई अनूठी प्रगति के दौर को '''बंगाल के नवजागरण''' की संज्ञा दी जाती है। इस दौरान समाज सुधारकों, साहित्यकारों और कलाकारों ने स्त्री, विवाह, दहेज, जातिप्रथा और धर्म संबंधी स्थापित परम्पराओं को चुनौती दी। बंगाल के इस घटनाक्रम ने समग्र भारतीय आधुनिकता की निर्मितियों पर अमिट छाप छोड़ी। इसी नवजागरण के दौरान भारतीय राष्ट्रवाद के शुरुआती रूपों की संरचनाएँ सामने आयीं। बंगाल के नवजागरण का विस्तार [[राजा राममोहन राय]] (१७७५-१८३३) से आरम्भ होकर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] (१८६१-१९४१) तक माना जाता है।
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