"समानता": अवतरणों में अंतर

छो →‎राजनीतिक समानता: समानता के प्रकार
संजीव कुमार द्वारा सम्पादित संस्करण 3664139 पर पूर्ववत किया। (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 52:
'''{{मुख्य|विधिक समता}}'''
 
कानूनी समानता का मतलब है कानून के सामने समानता और सबके लिए कानून की समान सुरक्षा। अवधारणा यह है कि सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं, इसलिए कानून के सामने समान हैसियत के पात्र हैं। कानून अंधा होता है और इसलिए वह जिस व्यक्ति से निबट रहा है उसके साथ कोई मुरौवत नहीं करेगा। वह बुद्धिमान हो या मूर्ख, तेजस्वी को या बुद्धू, नाटा हो या कद्दावर, गरीब हो या अमीर, उसके साथ कानून वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा औरों के साथ करेगा। लेकिन अपवादउपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी बालक या बालिका के साथ किसी वयस्क पुरुष या स्त्री जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा और बालक या बालिका के साथ मुरौवत किया जाएगा। (दुर्भाग्यवश, कानूनी समानता का मतलब जरूरी तौर पर सच्ची समानता नहीं होती, क्योंकि जैसा कि हम सभी जानते हैं, कानूनी न्याय निःशुल्क नहीं होता और अमीर आदमी अच्छे से अच्छे वकील की सेवाएँ प्राप्त कर सकता है और कभी-कभी तो वह न्यायाधीशों को रिश्वत देकर भी अन्याय करके बच निकल सकता है। शुद्ध उदारवादी व्यवस्था हमें कानून के सामने सैद्वांतिक समानता तो प्राप्त रहेगी लेकिन उसका लाभ उठाने के लिए हमें समय और पैसे की जरूरत होगी और अगर हमारे पास ये दोनों नहीं हैं तो व्यवस्था ने हमसे जिस समानता का वादा किया है वह निरर्थक होगी।)
 
==बाहरी कड़ियाँ==== राजनीतिक समानता==
राजनीतिक स्वतंत्रता का मतलब बुनियादी तौर पर सार्वजनीन मताधिकार और प्रतिनिधिक सरकार है। सार्वजनीन मताधिकार का मतलब यह है कि सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार है और एक व्यक्ति का एक ही मत होता है। प्रतिनिधिक सरकार का अर्थ यह है कि सभी को बिना किसी भेदभाव के चुनाव में स्पर्धा में खड़े होने का अधिकार है और वह सार्वजनिक सेवा के लिए चुनाव में खड़ा होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी को मत देने के लिए विवश किया जा सकता है और प्रत्येक को अपनी पसन्द जाहिर करनी है या यदि कुछ लोगों को गलत प्रभाव डालकर मतदान करने से विमुख कर दिया जाता है या चाहे जिसे मत देने के लिए राजी कर लिया जाता है तो उसके संबंध में राज्य कुछ खास नहीं कर सकता और अगर ज्यादातर लोग या काफी बड़ी संख्या में लोग मतदान नहीं करते और इस प्रकार सरकार के प्रतिनिधिक स्वरूप को कमजोर करते हैं तो राजनीतिक समानता की शुद्ध उदारवादी समझ के अनुसार किसी प्रकार की राजनीतिक असमानता का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है। (उदाहरण के लिए, अमरीका में, जो सभी नागरिकों को पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता प्रदान करने वाला लोकतंत्र होने का दावा करता है, लगभग केवल आधे लोग ही चुनावों में मतदान करते हैं। जो लोग मतदान नहीं करते वे मुख्य रूप से गरीब तबके के या काले लोग और उनमें से भी खासतौर से गरीब काले लोग होते हैं। उदारवादी परंपरा में यह कोई चिंता का विषय नहीं है- संवैधानिक रूप से तो समानता की गारंटी दे दी गई है और वह सबको मिली हुई है।)
 
पंक्ति 64:
 
ऊपर कही गई बातों के अलावा भारत जैसे लोकतंत्र में शक्तिशाली कार्यकारी नौकरशाहियाँ और न्यायिक सेवाओं के सदस्य होते हैं, जिन्हें राजनीतिज्ञों की तरह जनता नहीं चुनती और अगर लोग उनसे तंग आ चुके हैं तो उनका कोई चुनाव नहीं होता कि वे उन्हें निकाल बाहर करें। अपनी शैक्षिक तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण इन समूहों के सदस्य अक्सर ऊपरी आर्थिक तबकों औेर वर्गों (या जातियों) से आते हैं और नीति-निर्धारण को अनवरत और प्रबल रूप से प्रभावित करते रहते हैं। जाहिर है कि ये समूह अन्यों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक समानता का उपभोग करते हैं। उदाहरण के लिए, जब उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश सरकार के किसी नीतिगत विधान पर रोक लगा देता है और उसे गैर-कानूनी घोषित कर देता है हालांकि उस विधान की रचना स्वतंत्र और साफ-सुथरे चुनाव में निर्वाचित प्रतिनिधियों ने, चाहे वे जितने अशिक्षित या शैक्षित दृष्टि से योग्यताहीन हों, की है। वह न्यायाधीश कानूनी तौर पर तो नहीं लेकिन विशुद्ध राजनीतिक दृष्टिकोण है स्पष्टतः अपने अन्य सह-नागरिकों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ समानता की स्थिति का उपभोग कर रहा होता है। (‘अभिजन सिद्धांत’ नामक एक ऐसा उदारवादी लोकतांत्रिक सिद्धांत भी है जिसका कहना है कि राजनीतिक समानता एक भ्रम है, क्योंकि राजनीतिक शक्ति का उपभोग हमेशा अभिजन ही करता है और उसी को करना चाहिए। इसलिए गरीब या आर्थिक दृष्टि से कमजोर नागरिकों को अधिक राजनीतिक औकात -या समानता देने की कोई जरूरत नहीं है और ऐसा करने की कोशिश करना बेकार है।)
 
सामाजिक समानता Social Equality
• समाज में विशेषाधिकारों का अंत ।
• जाति, भाषा, धर्म, वर्ण, जन्म, लिंग तथा क्षेत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
• भारत में समान अवसरों के मद्देनजर एक विशेष समस्या सुविधाओं की कमी नहीं बल्कि सामाजिक रीति रिवाज है।[https://www.rajnitivigyan.in/2018/02/equality-type-related-ideas.html?m=1 समानता के प्रकार]<ref>{{cite web}}</ref>
 
== आर्थिक और सामाजिक समानता==