"गुरु घासीदास": अवतरणों में अंतर

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'''गुरू घासीदास''' जी का जन्म 18 दिसम्बर 1756 को (1756 – अंतर्ध्यान अज्ञात) ग्राम गिरौदपुरी तहसिल बलौदाबाजार जिला रायपुर में(वर्तमान में बलौदाबाजार भी जिला घोषित हो गया है अतेव अभी वर्तमान में गिरौदपुरी बलौदाबाजार जिले के कसडोल तहसील के अंतर्गत आता है ) पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरूजी सतनाम [[सतनाम धर्म]] जिसे आम बोल चाल में [[सतनामी धर्म]] के प्रवर्तक कहा जाता है, गुरूजी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिये वहाँ गुरूजी के वंशज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिभेद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिये।
 
== जीवनी ==
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== गुरू घासीदास की शिक्षा ==
बाबा जी को ज्ञान की प्राप्ति उनके जन्मस्थल ग्राम गिरौदपुरी के वनों में (गिरौदपुरी के वन सोनाखान
बाबाके जीअंतर्गत कोआते ज्ञानथे कीयह प्राप्तिवही छतीशगढसोनाखान है जहाँ के रायगढ़राजा जिलावीर केनारायण सारंगढ़सिंह तहसीलथे मेंबाबा बिलासपुरजी रोडसमय (वर्तमानवीर में)मेंनारायण सिंह के पिता रामराय राजा थे)स्थित एकऔरा-धौरा नामक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त प्राप्त हुआ माना जाता है जहाँ आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गयी है
 
गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।