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{{मुख्य|केरल की राजनीति}}
 
केरल को भारत की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जा सकता है। चुनाव के द्वारा कम्यूनिस्ट पार्टी का सत्ता में आना और विभिन्न पार्टियों के मोर्चों का गठन तथा उनका शासक बनना आदि अनेक राजनीतिक प्रयोग पहली बार केरल में हुए। देश में मशीनी मतपेटी का प्रथम प्रयोग भी केरल में हुआ। केरल में 140 विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र और 20 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। विधान सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित किया जाता है। केरल में अनेक राजनीतिक दल तथा उनके संपोषक संगठन भी हैं। यथा - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी]], जनतादल (एस), [[मुस्लिम लीग]], केरल कांग्रेस (एम), केरल कॉग्रेस (जे) आदि। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के श्रमिक, विद्यार्थी, महिला, युवा, कृषक और सेवा संगठन भी सक्रिय हैं। ट्रेड यूनियनों की संख्या आवश्यकता से अधिक बढ़ रही है। 1973 में केरल की पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की संख्या 1680 थी। यह 1996 में 10326 हो गई। यहाँ सरकारी नौकरी में रत 3000 लोगों के लिए एक ट्रेड यूनियन बनाई गई है।
 
केरल राज्य के आविर्भाव के बाद राज्य में 13 बार चुनाव हुए। बीस मत्रिमंण्डल तथा 12 मुख्यमंत्री हुए हैं। 5 अप्रैल 1957 को ई. एम. एस. नंपूतिरिप्पाड के नेतृत्व में प्रथम मंत्रिमण्डल सत्ता में आया। वर्तमान मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानन्दन ने 18 मई 2006 को शासन संभाला।
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