"बालाजी बाजी राव": अवतरणों में अंतर

छो 157.43.7.189 (Talk) के संपादनों को हटाकर Hindustanilanguage के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
पंक्ति 16:
| religion = [[हिन्दू]]
}}
'''बालाजी बाजी राव''' (8 दिसम्बर 1720 – 23 जून 1761) को '''नाना साहेब''' के नाम से भी जाना जाता है। वे [[मराठा साम्राज्य]] के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। इनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपनी चरम उत्कर्ष पर पहुंचा बालाजी बाजीराव 1740 में अपने पिता बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा के पद की जिम्मेदारी छत्रपति शाहू ने उन्हें अपना पेशवा नियुक्त किया. और वह चितपावन ब्राह्मण कुल के तीसरे पेशवा थे 1740 में अपने पिता बाजीराव प्रथम कीमृत्यु के बाद यह पेशवा के पद को इन्होंने संभाला 1741 में इन्होंने नागपुर के और वेयर आर के राजा रघुजी भोसले को बंगाल में अभियान करने के लिए प्रेरित किया उन्होंने कर्नाटक में भी अपने प्रभाव को बढ़ाया और साथ ही साथ कई सारे मराठा सरदारों को एक कर इन्होंने दिल्ली के तक को भी अपने अधीन कर लिया 1743 से लेकर 1749 तक इन्होंने बंगाल में खूब सारे लूट और रघुजी भोसले ने बंगाल में अपने प्रभाव को स्थापित किया हालांकि वहां के नवाब अली खान ने उन्हें रोक कर रखा परंतु अली खान अंत में पछताने के बाद मराठों के साथ कई सारे रुपए और पैसे मराठों को दिए इन्होंने सदाशिव राव भाऊ को दक्षिण अभियान पर भेजो पिता के भाई के लड़के थेसदाशिव राव भाऊ ने दक्षिण में 1758 में निजाम की सेनाओं को उदगीर में पराजित किया जिसके बाद उनके प्रभाव में काफी वृद्धि और इसी के प्रभाव के चलते 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में पेशवा बालाजी बाजीराव ने उन्हें मराठा सेना का सेनापति भी नियुक्त किया है उत्तर में युद्ध के लिए भेजा था कि उन्होंने कई और सरदारों पर विश्वास नहीं किया यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी उन्होंने और उनके रघुनाथ राव बालाजी बाजीरावमहादजी शिंदे और भी कई सरदार जिस बात से नाखुश थे हालांकि 1757 58 में मराठा साम्राज्य दिल्ली के साथ साथ अटैक पाकिस्तान तक फैल चुका था 1758 में उन्होंने कामदार पेशावर आज पर अपना कब्जा जमा लिया 1757 में उन्होंने माधुरी दिल्ली सम्राट का एक तमाशा मंत्री था उसके साथ संबंध स्थापित कर संपूर्ण दिल्ली के आधार पर भी अपना प्रभाव जमाने में काफी वृद्धि हुई सभी से पूरे देश के राजा महाराजाओं का मराठों से खतरा पैदा हो गया था हमेशा लूटपाट कर ही रात में लूट पाते थे इसलिए सभी देशों ने किया जाना चाहिए अवध के नवाब सिराजुद्दोला और रोहिल्ला सरदार नजीब उन दोनों ने मिलकर यह रणनीति बनाई गई है मजदूर रानी को भारत में बुलाकर मराठों पर आक्रमण करवाया जाए इसमें उन्होंने सभी राजपूत राजाओं जैसे जयपुर के राजा माधव सिंह और मेवाड़ के राजा भी कहा कि उनको कोई समर्थन किया भरतपुर के जाट राजा सूरजमल जाट ने मराठों को समर्थन किया जिसके कारण रोहिल्ला सरदार उनसे नाराज हो गया परंतु मराठों को रसद ना मिलने के लिए उन्होंने सभी जगह से पानीपत में उनके रास्ते काट दिए और अब मराठों को रसद की आमद मात्र पंजाब से ही हो सकती थी मराठों को लिया पानीपत का युद्ध जरूरी हो गया हालांकि पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की एक भयानक हार हुई जिसमें करीब एक लाख मराठा सैनिक मारे गए और 40000 तीर्थयात्री जो कि उस वक्त मराठा सेना के साथ गए हुए थे उत्तर भारत में उन सब का भी कत्लेआम कर दिया गया जिसमें कई सारे बच्चे औरतें भी शामिल थी एक इतिहासकार के अनुसार वह भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन उस दिन महाराष्ट्र में ऐसा कोई परिवार नहीं था जहां किसी को मौत की खबर ना पहुंचे और इस हार के बाद हालांकि उस युद्ध में सदाशिवराव भाऊ जी सिंधिया इब्राहिम गर्दी मराठा तो इन सभी की मौत हो गई हालांकि महादजी सिंधिया और नाना फडणवीस से भाग निकले बालाजी बाजीराव कोई अजब खबर पहुंची तो वे बड़ी मराठा सेना लेकर फिर पानीपत की योनि को बड़े शाह दुर्रानी का पता चली उन्होंने बालाजी बाजीराव से युद्ध करने से पहले ही हो चुकी थी आगरा की दुल्हनी की हार के बाद उसकी सेना में बहुत बड़ा नुकसान पहले से ही हो चुका था जिसके कारण उन्होंने बालाजी बाजीराव को पत्र लिखा और कहा कि मैं दिल्ली आपको सकता हूं मेरी सीने में भी बहुत अधिक नुकसान हो चुका है और मैं आप मराठा सेना से लड़ना नहीं चाहता पर सदाशिव राव भाऊ ने युद्ध को प्रेरित किया मैं अफगानिस्तान जा रहा हूं दिल्ली पर शासन करें यह खबर मिलते हैं बाजार बालाजी बाजीराव दिल्ली से वापस पुणे रोड गया जहां जोगन 1761 में डिप्रेशन के चलते पार्वती हिल मंदिर में उसकी मृत्यु हो गई उसके बाद उस युद्ध में उसका पुत्र विश्वास राव भी मारा गया इस कारण इस दुख को सहन आज का और इस युद्ध का मुख्य कारण सदाशिवराव भाऊ का हाथी से उतरकर युद्ध के मैदान में आना था विश्वास राव की मौत को देखकर उतारकर उनके शरीर को ढूंढने चले गए जिसके कारण पूरी मराठा सेना में अफरा-तफरी मच गई यह एक मुख्य कारण था उस युद्ध में मराठों की हार का और यह सदाशिवराव भाऊ के कम नेतृत्व को दर्शाता है उस युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य का उत्थान एकदम शुरू किया परंतु महादजी सिंधिया नाना फडणवीस और बालाजी बाजीराव के दूसरे पुत्र माधव राव ने अपनी शक्ति को वापस बढ़ाया और पूरा उत्तर भारत में अपने प्रभाव को स्थापित किया उन्होंने रोहिल्ला सरदारों को पनिश किया हमको पराजित किया और साथ ही साथ ही बोला जितने की मराठों के खिलाफ विरोध किया था उसकी कब्र को तबाह कर के उनके शहर को पूरी तरीके से विध्वंस कर दिया और 1772 के आते हैं तो उन्होंने वापस दिल्ली के साथ-साथ संपूर्ण उत्तर भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया इस युद्ध में महादजी सिंधिया ने मराठा साम्राज्य की भूमिका निभाई मराठा साम्राज्य माधवराव पेशवा निधि मराठा साम्राज्य के पुनरुत्थान में बहुत ही बड़ा योगदान दिया परंतु पधारो पेशवा की मृत्यु के बाद एकदम सही मराठा साम्राज्य का विस्तार रुक गया और 1818 के आते-आते मराठा साम्राज्य का अंत हो गया यह पानीपत इसराइल मराठों के लिए बहुत ही भारी साबित हुआ इसमें कई सारे तीर्थ यात्री मारे गए थे 1760 के आते-आते मराठा साम्राज्य मराठा साम्राज्य दक्षिण में ढक्कन से लेकर उत्तर भारत में वर्तमान पाकिस्तान के 8 जिले तक पहुंच चुका था और वह काम धार तक अपना रोल जो कि अफगानिस्तान में वहां तक ले जाना चाहते थे तो ऐसा नहीं होने दिया परंतु 2 मिनट के बाद योद्धा ने बस से हुआ बालाजी बाजीराव को भी खो दिया डिप्रेशन के कारण उनकी मौत 1761 में हो गई उसके बाद अहमद ने भारत पर आक्रमण किया और कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई मराठी महाराज सिंधिया के नेतृत्व में एक बार फिर से भारत पर आक्रमण किया और उन्होंने रोहिलखंड जो कि रोसरा सरदार नेजी बुद्ध के पुत्र चलाते थे उसको विधान कर दिया और मजबूत वाला की कमर तोड़ दी दिल्ली पर अपना अधिकार जमाया
'''बालाजी बाजी राव''' (8 दिसम्बर 1720 – 23 जून 1761) को '''नाना साहेब''' के नाम से भी जाना जाता है। वे [[मराठा साम्राज्य]] के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। इनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचा।
 
{{मराठा साम्राज्य}}