"संस्कृत साहित्य": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Devimahatmya Sanskrit MS Nepal 11c.jpg|right|thumb|300px|[[बिहार]] या [[नेपाल]] से प्राप्त [[देवीमाहात्म्य]] की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की)]]
[[ऋग्वेद]]काल से लेकर आज तक [[संस्कृत]] भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। [[हिमालय]] से लेकर [[कन्याकुमारी]] के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। [[भारतीय संस्कृति]] और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से [[धर्मनिरपेक्ष]] (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक,
संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है।
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