"अथर्ववेद संहिता": अवतरणों में अंतर

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'''अथर्ववेद संहिता''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम [[वेद|वेदों]] में से चौथे वेद [[अथर्ववेद]] की [[संहिता]] अर्थात मन्त्र भाग है। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
 
अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हैं और उनके इस वेद को प्रमाणिकता स्वंम महादेव शिव की है, ऋषि अथर्व पिछले जन्म मैंमें एक असुर हरिन्य थे और उन्होंनेथे। प्रलय काल मैंमें जब ब्रह्मा निद्रा मैंमें थे तो उनके मुख से वेद निकल रहे थे तो असुर हरिन्य ने ब्रम्ह लोक जाकर वेदपान कर लिया था, यह देखकर देवताओं ने हरिन्य की हत्या करने की सोची| हरिन्य ने डरकर भगवान् महादेव की शरण ली, भगवन महादेव ने उसे अगलेउन्हें अगले जन्म मैंमें ऋषि अथर्व बनकर एक नए वेद को लिखने का वरदान दिया था, इसी कारण अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हुए। अनेक विद्वानों का मत है कि अथर्ववेद के रचियता ऋषि अंगिरा हैं।
 
:'''यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।