"भारत भारती": अवतरणों में अंतर

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"भारत भारती", [[मैथिलीशरण गुप्त]]जी की प्रसिद्ध काव्यकृति है। यह स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है | [[भारतवर्ष]] के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति "भारत - भारती " निश्चित रूप से किसी शोध कार्य से कम नहीं है | गुप्तजी की सृजनता की दक्षता का परिचय देनेवाली यह पुस्तक कई सामाजिक आयामों पर विचार करने को विवश करती है। यह सामग्री तीन भागों में बाँटीं गयी है -
अतीत खण्ड, वर्तमान खण्ड तथा भविष्यत् खण्ड ।
 
'''अतीत खण्ड''' का मंगलाचरण द्रस्टव्य है -
 
मानस भवन में आर्य्जन जिसकी उतारें आरतीं-
 
भगवान् ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।
 
हो भद्रभावोद्भाविनी वह भारती हे भवगते।
 
सीतापते। सीतापते !! गीतामते! गीतामते !! ।।1।।
 
 
इसी प्रकार उपक्रमणिका भी अत्यन्त "सजीव" है-
 
हाँ, लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा,
 
दृक्कालिमा में डूबकर तैयार होकर सर्वथा ।|१||
 
स्वच्छन्दता से कर तुझे करने पड़ें प्रस्ताव जो,
 
जग जायँ तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो। ।।2।।
 
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
 
हैं निशि दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा।
 
जो आज एक अनाथ है, नरनाथ कल होता वही;
 
जो आज उत्सव मग्र है, कल शोक से रोता वही ।।3।।
 
==भारत भारती पुरस्कार==