"भुवनेश्वर": अवतरणों में अंतर

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'''भुवनेश्‍वर''' [[भारत]] के पूर्व में स्थित [[ओडिशा]] राज्‍य की [[राजधानी]] है। यह ओड़ीसा का सबसे बड़ा नगर इतिहासतथा मेंपूर्वी अपनाभारत महत्‍वपूर्णका स्‍थानआर्थिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह नगर अत्यन्त महत्वपूर्ण रखता है। तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में यहीं प्रसिद्ध [[कलिंग युद्ध]] हुआ था। इसी युद्ध के परिणामस्‍वरुप [[सम्राट अशोक|अशोक]] एक लड़ाकू योद्धा से प्रसिद्ध बौद्ध अनुयायी के रूप में परिणत हो गया था।
 
भुवनेश्‍वर को पूर्व का 'काशी' भी कहा जाता है। यह एक प्रसिद्ध [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] स्‍थल भी रहा है। प्राचीन काल में 1000 वर्षों तक बौद्ध धर्म यहां फलता-फूलता रहा है। बौद्ध धर्म की तरह [[जैन धर्म|जैनों]] के लिए भी यह जगह काफी महत्‍वपूर्ण है। प्रथम शताब्‍दी में यहां [[चेदि राजवंश|चेदि वंश]] के एक प्रसिद्ध जैन राजा ''[[खारवेल]]'' हुए थे। इसी तरह सातवीं शताब्‍दी में यहां प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों का निर्माण हुआ था। इस प्रकार भुवनेश्‍वर वर्तमान में एक बहुसांस्‍कृतिक नगर है।
 
ओडिशा की इस वर्तमान राजधानी का निमार्ण इंजीनियरों और वास्‍तुविदों ने उपयोगितावादी सिद्धान्त के आधार पर किया है। इस कारण नया भुवनेश्‍वर प्राचीन भुवनेश्‍वर के समान बहुत सुंदर तथा भव्‍य नहीं है। यहां आश्‍चर्यजनक मंदिरों तथा गुफाओं के अलावा कोई अन्‍य सांस्‍कृतिक स्‍थान देखने योग्‍य नहीं है। [[File:Jaydev_vihar.jpg|thumb|जयदेव विहार, भुबनेस्वर]]
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प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 5 रु., विदेशियों के लिए 100 रु.।
 
घूमने का समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक।
 
यह मंदिर सभी दिन खुला रहता है। स्‍टील कैमरे से इस मंदिर की फोटो खीचने पर कोई शुल्‍क नहीं लिया जाता। लेकिन इस मंदिर की वीडियोग्राफी का शुल्‍क 25 रु. है।
 
राजा-रानी मंदिर से थोड़ा आगे जाने पर 'ब्राह्मेश्‍वर' मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्‍थापना 1060 ई. में हुई थी। इस मंदिर के चारों कानों पर चार छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं। इस मंदिर की दीवारों पर अदभूत नक्‍काशी की गई है। इनमें से कुछ कलाकृतियों में स्‍त्री- पुरुष को कामकला की विभिन्‍न अवस्‍थाओं में दर्शाया गया है।
 
=== मुक्‍तेश्‍वर मंदिर समूह ===
राजा-रानी मंदिर से 100 गज की दूरी पर मुक्‍तेश्‍वर मंदिर समूह है। इस समूह में दो महत्‍वपूर्ण मंदिर है: परमेश्‍वर मंदिर तथा मुक्‍तेश्‍वर मंदिर। इन दोनों मंदिरों की स्‍थापना 650 ई. के आसपास हुई थी। परमेश्‍वर मंदिर सबसे सुरक्षित अवस्‍था में है। यह मंदिर इस क्षेत्र के पुराने मंदिरों में सबसे आकर्षक है। इसके जगमोहन में जाली का खूबसूरत काम किया गया है। इसमें आकर्षक चित्रकारी भी की गई है। एक चित्र में एक नर्त्तकी और एक संगीतज्ञ को बहुत अच्‍छे ढ़ंग से दर्शाया गया है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है। यह शिवलिंग अपने बाद के लिंगराज मंदिर के शिवलिंग की अपेक्षा ज्‍यादा चमकीला है।
 
परमेश्‍वर मंदिर की अपेक्षा मुक्‍तेश्‍वर मंदिर छोटा है। इस मंदिर की स्‍थापना 10वीं शताब्‍दी में हुई थी। इस मंदिर में नक्‍काशी का बेहतरीन काम किया गया है। इस मंदिर में की गई चित्रकारी काफी अच्‍छी अवस्‍था में है। एक चित्र में कृशकाय साधुओं तथा दौड़ते बंदरों के समूह को दर्शाया गया है। एक अन्‍य चित्र में पंचतंत्र की कहानी को दर्शाया गया है। इस मंदिर के दरवाजे आर्क शैली में बने हुए हैं। इस मंदिर के खंभे तथा पि‍लर पर भी नक्‍काशी की गई है। इस मंदिर का तोरण मगरमच्‍छ के सिर जैसे आकार का बना हुआ है।