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:;‘कुंभनदास’ लाल गिरिधर बिनु जीवन जनम अलेखैं।।
* [[सूरदास]] (१४७८ ई. - १५८० ई.)
:;अबिगत गति कछु कहति न आवै।
:;चरन कमल बंदौ हरि राई ।
:;ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
:;जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥
:;परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
:;बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई ।
:;मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
:;सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई ॥
:;रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।
:;सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥
* [[कृष्णदास]] (१४९५ ई. - १५७५ ई.)
* [[परमानन्ददास]] (१४९१ ई. - १५८३ ई.)