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* [[परमानन्ददास]] (१४९१ ई. - १५८३ ई.)
:;बृंदावन क्यों न भए हम मोर।
:;करत निवास गोबरधन ऊपर, निरखत नंद किशोर।किशो॥
:;क्यों न भये बंसी कुल सजनी, अधर पीवत घनघोर।
:;क्यों न भए गुंजा बन बेली, रहत स्याम जू की ओर॥
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:;'परमानंद दास' को ठाकुर, गोपिन के चितचोर॥
* [[गोविंदस्वामी]] (१५०५ ई. - १५८५ ई.)
:;प्रात समय उठि जसुमति जननी गिरिधर सूत को उबटिन्हवावति।
:;करि सिंगार बसन भूषन सजि फूलन रचि रचि पाग बनावति॥
:;छुटे बंद बागे अति सोभित,बिच बिच चोव अरगजा लावति।
:;सूथन लाल फूँदना सोभित,आजु कि छबि कछु कहति न आवति॥
:;विविध कुसुम की माला उर धरि श्री कर मुरली बेंत गहावति।
:;लै दर्पण देखे श्रीमुख को,गोविंद प्रभु चरननि सिर नावति॥
* [[छीतस्वामी]] (१४८१ ई. - १५८५ ई.)
:;धन्य श्री यमुने निधि देनहारी ।
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:;जिन कोउ सन्देह करो बात चित्त में धरो, पुष्टिपथ अनुसरो सुखजु कारी ।
:;प्रेम के पुंज में रासरस कुंज में, ताही राखत रसरंग भारी ॥
::;श्री यमुने अरु प्राणपति प्राण अरु प्राणसुत, चहुजन जीव पर दया विचारी ।
:;'छीतस्वामी' गिरिधरन श्री विट्ठल प्रीत के लिये अब संग धारी ॥
* [[नंददास]] (१५३३ ई. - १५८६ ई.)