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* [[परमानन्ददास]] (१४९१ ई. - १५८३ ई.)
:;बृंदावन क्यों न भए हम मोर।
:;करत निवास गोबरधन ऊपर, निरखत नंद
:;क्यों न भये बंसी कुल सजनी, अधर पीवत घनघोर।
:;क्यों न भए गुंजा बन बेली, रहत स्याम जू की ओर॥
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