"चोल राजवंश": अवतरणों में अंतर

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== चोलों का उदय ==
उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक '''विजयालय''' (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण दि्वतीयद्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवएवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय [[सिंहल]] पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतमि दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् [[कृष्ण तृतीय]] द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे।
[[चित्र:Raraja detail.png|अंगूठाकार|तंजावुर के [[बृहदेश्वर मंदिर]] में '''राजराज चोल''' की प्रतिमा]]
इसके पश्चात् '''राजराज प्रथम''' (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर [[पश्चिमी चालुक्य|पश्चिमी चालुक्यों]] से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।