"हिन्दू धर्म": अवतरणों में अंतर

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यशु ने गाॅड फादर के बारे में कहा ।
मूसा यहूवा के बारे में कहा ।
गुरूनानक ने वाले गुरूनानकवाहे गुरू के बारे में कहा ।
बुध्द ने अप्रत्यक्ष रूप से चेतना को ही परमात्मा कहा ।
तीर्थंकर ने भी विश्व को ही कहा ।
ये सब भी परिकल्पना के पात्र है मनुष्यों के फिर भी परमात्मा के स्वरूप के बारे में इन्हें अंतिम में ज्ञात होता है ।
 
हिन्दू को सबसे पहले विराट पुरूष के दर्शन होते है जो विराट कृष्ण या राम है अर्थात हिन्दू धर्म में परमात्मा ही ने सीधे कहा में ही परमात्मा हूँ और सीधे उसके रूप के दर्शन हुए इसलिए इसलिए यहां धर्म की उत्पत्ति नहीं हुई है यहां तब से है जब से परमात्मा का अस्तित्व है अर्थात कहा जाऐ तो सदैव था ।
हिन्दू में परमात्मा एक है मात्र उसके रूप कई है जैसे शिव विष्णु ब्राम्हा जगदम्बा कृष्ण राम ।