"चेतना": अवतरणों में अंतर

छो 2401:4900:1909:FD40:C6E8:8EA2:68D:BA00 (Talk) के संपादनों को हटाकर 2405:204:A390:ECEB:0:0:A14:68AC के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=फरवरी 2016}}[[चित्र:RobertFuddBewusstsein17Jh.png|thumb|१७वीं सदी से चेतना का एक चित्रण]]
'''चेतना''' कुछ [[प्राणी|जीवधारियों]] में स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का [[बोध]] होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम है। [[विज्ञान]] के अनुसार चेतना वह अनुभूति है जो [[मस्तिष्क]] में पहुँचनेवाले अभिगामी आवेगों से उत्पन्न होती है। इन आवेगों का अर्थ तुरंत अथवा बाद में लगाया जाता है।
 
चेतना ___ मनुष्य का वास्तविक अस्तित्व उसकी चेतना ही है जो मस्तिष्क के बीचो-बीच रहती है ।
ह्रदय में जो अवचेतन है जिसके कारण परिकल्पना की दुनिया है जिसमें प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य की कथा है उसमें स्वयं का कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है ।
वास्तविक दुनिया के इतिहास में भविष्य में स्वयं का असित्व की स्मरण और कल्पना ही रहती है वहां भी वास्तविक नहीं है वर्तमान समय के दुनिया में स्वयं का अस्तिव मात्र स्वयं का शरीर है परन्तु शरीर से भी जो भिन्न अदृश्य और अभौतिक स्वयं का वास्तविक अस्तित्व है वहां स्वयं की चेतना है वही आत्मा है।
अवचेतन मन स्वयं का वास्तविक अस्तित्व नहीं क्योंकि यहां सम्पूर्ण विश्व के प्रकृति व मानवीय समाज से जुड़ा है शरीर तो पृथ्वी के तत्वो की देन है मन तो संसार है तो है वरना नहीं पंचमहाभूत जिसमें इन्द्रियां जैसे आंख नाक कान मुंह जिव्हा आदि रस भय क्रोध शांत आदि कुण्डलिनी चक्र शक्ति बुध्दि भाव शरीर के अंगों की रचना तो पंच तत्व है ह्रदय से भाव इच्छा भी स्वयं का असित्व नहीं है जो सिर्फ और सिर्फ स्वयं का वास्तविक अस्तित्व है वहां स्वयं की चेतना है ।
 
ये शरीर तो पृथ्वी की देन है ये ह्रदय के कारण लोगों का सम्बन्ध है इस अवचेतन मन के कारण परमात्मा आत्मा और जीवात्मा से मनुष्य जुड़ा है परन्तु चेतना जो मस्तिष्क के बीचो-बीच है उसमें स्वयं का वास्तविक अस्तित्व है उसमें ध्यान केन्द्रित कर लेने पर मोक्ष की आवश्यकता ही नहीं होती है।
संसार के दुख सुख तो मन को होती है चेतना को नहीं जन्म मरण शरीर का होता है चेतना का नहीं ।
स्वयं की चेतना ही स्वयं का वास्तविक अस्तित्व है।
 
चेतना ही सम्पूर्ण विश्व को समझतीं है चेतना ज्ञान को धारण करती है इसलिए ज्ञान से भी जो सर्वश्रेष्ठ है वहां चेतना है ।
परिकल्पना की दुनिया और वास्तविक दुनिया कहा जाऐ दोनों दुनिया को जो समझती है वहां चेतना है ।
 
__ चेतना ही ब्रह्म है और परमात्मा मात्र एक परिकल्पना है वास्तविक नहीं यहां संसार पूर्णतः भ्रम है यहां सत्य नहीं है कुछ सत्य है तो चेतना ही सत्य है इसलिए वेदांत में कहा गया है ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या चाहे वह परिकल्पना की दुनिया हो या वास्तविक दुनिया।
 
== चेतना का स्थान ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/चेतना" से प्राप्त