"गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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* [[चार आर्य सत्य]]
* [[अष्टांग मार्ग]]
सम्पूर्ण विश्व का बौद्ध होना ____ सम्पूर्ण प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य मनुष्यों की चेतना की परिकल्पना है इसलिए उनके कथा प्रर्थना स्थल व अवशेष है ।
 
विज्ञान के विश्व उत्पत्ति विश्व का आकार व जीवन की उत्पत्ति के सिध्दान्त एक कल्पना अनुमान व भ्रम उत्पन्न करने के लिए है ।
 
विश्व पृथ्वी तक ही सीमित है अंतरिक्ष एक भ्रम मात्र है स्वर्ग व नरक वास्तव में नहीं है मनुष्य बारम्बार मनुष्य का ही जन्म लेता है अधिकांश सदैव पुरूष व स्त्री योनि में जन्म लेते है कुछ किसी जन्म में नपुसंक किसी जन्म में स्त्री व पुरुष का जन्म लेते रहते है ।
 
सभी मनुष्य एक समान है वे किसी जन्म में अमीरी-गरीबी अज्ञानी - ज्ञानी उच्च - निम्न स्तर का जीवन जीते है ।
 
विश्व एक खरब वर्षों के कालचक्र में गति करता है और सभी मनुष्यों के एक अरब जन्म होते है इसलिए इस विश्व का भूतकाल भविष्य काल व वर्तमान काल के प्रकृति व मानवीय समाज के परिस्थिति घटनाओं और गतिविधियों पूर्व निर्धारित है जिसे बदला नहीं जा सकता अर्थात या विश्व ना कभी बना है ना अंत होगा इसका ।
 
ना आत्मा है ना परमात्मा है चेतना ही स्वयं को जाने की कोशिश करने पर स्वयं को आत्मा रूप में प्रति होती है और जो परमात्मा है वहां मनुष्य को संसार में एक निश्चित पहचान देने के लिए मनुष्य की परिकल्पना है ।
 
विश्व में तीन प्रकार के मनुष्य है अधिकांश मनुष्य सामान्य है जो संसारिक जीवनयापन करने के लिए जन्म लेते है कुछ दुष्ट है जो समाज में अशांति अश्लीलता भष्ट्राचार भेदभाव हिंसा करने के लिए जन्म लेते है और कुछ सज्जन है जो समाज में शांति शालीनता शिष्टाचार भाईचारा अहिंसा फैलाने के लिए जन्म लेते है।
 
विश्व के मनुष्य संसारिक सुख प्राप्त करने के लिए मनोरंजन करते है जिसमें यात्रा करना स्वादिष्ट भोजन करना वस्त्र आभूषण एकत्रित करना शरीर की सौन्दर्य को महत्व देना खेल व प्रेम प्रसंग सम्बन्ध में अत्याधिक रूचि लेना जब इनकी पूर्ति होती है तो सम्पत्ति व प्रसिध्द के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करते है अधिकांश मनुष्य अपने कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवनभर परिश्रम करते है परन्तु इन सब संसारिक वस्तु व भावनाओं में किसी की पूर्ति नहीं होती है तो दुख प्राप्त करते है और जिनकी पूर्ति होती है तो सुख प्राप्त करते है ।
परन्तु अधिकांश मनुष्य असुरक्षित स्थानों जीव जन्तु व दुष्टों से दूरी बनाकर भी सुख से जीवनयापन कर सकते है ।
विश्व वास्तव में चार युगों में गति करता है पहला लौह युग जिसमें विश्व के अधिकांश लोग अशिक्षित व रुढिवादी होते है ताम्र युग जिसमें विश्व का आधुनिकीकरण होता है रजत युग जो अभी वर्तमान में चल रहा है स्वर्ण युग जिसमें अत्याधिक आधुनिक होता है विश्व फिर लौह युग फिर ताम्र क्रमशः चारो युग सैकड़ों वर्षो पश्चात् बार बार आते है ।
विश्व की जनसंख्या सीमित है कुल पन्द्रह अरब लोग है जिसमें सात अरब पुरूष सात अरब स्त्री व एक अरब नपुसंक है ।
विश्व में नकारात्मक व सकारात्मक शक्तियों का असित्व एक ऊर्जा के रूप में है अर्थात सभी धर्मों के प्रर्थना विधि मनुष्यों को सकारात्मक ऊर्जा देती है वही नकारात्मक शक्ति भी है जो मनुष्यों को अप्रत्यक्ष रूप से दुख पीढ़ा देती है ।
विश्व में पुनर्जन्म है सबके है परन्तु उसका बौध्द होता है की इनके जन्म ये थे उसके पुत्र पत्नी माता पिता ये थे इस स्थान में जन्म था कुछ स्त्री पुरूष हर जन्म के जीवनसाथी है अधिकांश के बदलते रहते है बहुत ही कम प्रेम भावना से मुक्त है ।
जब चेतना जागृत होती है तो सभी मनुष्यों के भावना ज्ञान के स्तर सोच - विचार प्रवृत्ति स्वभाव व्यवहार दिनचार्य जीवनशैली जीवनी और उनके अरब जन्मों का बौद्ध हो जाता है ।
 
बौध्द से प्रमाणित और निश्चित हो जाता है की यही सत्य है जैसे किसी ने भी पूरे ब्राम्ह्मण को नहीं देखा है फिर भी सौर मण्डल आकाशगंगा के होने की कल्पना करते है किसी ने भी परमात्मा को प्रत्यक्ष नहीं देखा है परन्तु उसके स्वरूप की कल्पना की है किसी ने भी प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य के घटनाओं को नहीं देखा प्रत्यक्ष मात्र कथा व उनके चिन्ह अवशेष को देखकर ही स्वीकार किया इसी प्रकार बौध्द हो जाता है की विश्व का परम् सत्य कुछ और है ।
 
== बौद्ध धर्म एवं संघ ==