"संस्कृति": अवतरणों में अंतर

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संस्कृति का शब्दार्थ है - '''उत्तम या सुधरी हुई स्थिति'''। [[मनुष्य]] स्वभावतः प्रगतिशील प्राणी है। यह बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है। ऐसी प्रत्येक जीवन-पद्धति, रीति-रिवाज रहन-सहन आचार-विचार नवीन अनुसन्धान और आविष्कार, जिससे मनुष्य पशुओं और जंगलियों के दर्जे से ऊँचा उठता है तथा सभ्य बनता है, सभ्यता और संस्कृति का अंग है। [[सभ्यता]] (Civilization) से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति (Culture) से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है। मनुष्य केवल भौतिक परिस्थितियों में सुधार करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाता। वह भोजन से ही नहीं जीता, शरीर के साथ मन और आत्मा भी है। भौतिक उन्नति से शरीर की भूख मिट सकती है, किन्तु इसके बावजूद मन और आत्मा तो अतृप्त ही बने रहते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए मनुष्य अपना जो विकास और उन्नति करता है, उसे संस्कृति कहते हैं। मनुष्य की जिज्ञासा का परिणाम धर्म और दर्शन होते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए वह [[संगीत]], [[साहित्य]], [[मूर्ति]], [[चित्र]] और [[वास्तु]] आदि अनेक कलाओं को उन्नत करता है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करता है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक '''सम्यक् कृति''' संस्कृति का अंग बनती है। इनमें प्रधान रूप से धर्म, दर्शन, सभी ज्ञान-विज्ञानों और कलाओं, सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं और प्रथाओं का समावेश होता है।
 
 
भारत की कुछ अनुसूचित जनजाति स्वयं को भिन्न धर्म की मान्यता के लिए भारत शासन से आधिकारिक मान्यता चाहती है ।
ये एक राजनीति कार्य व उस संस्कृति के लोगों की निजी सोच विचार है जो लोगों के संगठन व शासन ही निर्णय ले सकती है ।
लेकिन जहा तक सम्भव है ये सभी मात्र सदैव एक संस्कृति थी है और रहेगी ये हिन्दू धर्म की ही संस्कृति है चाहे इस सत्य को कोई स्वीकार करे या ना करे फिर भी जब कोई संस्कृति पूर्णतः हिन्दू धर्म की अपने अस्तित्व खोते रहती है तो उस संस्कृति के कुछ लोगों की मनोस्थित इस प्रकार हो जाती है की वे उस संस्कृति को धर्म की मान्यता दिलाने के लिए एक जुट होते है परन्तु नया धर्म बनाता नहीं है बस संस्कृति नष्ट हो जाने से बच जाती है ऐसा ही प्रकृति नियम है ।
अगर भारत में धर्म बनाते गये तो ना जाने कितने नए धर्म बन जाएंगे।
 
==संस्कृति की अवधारणा==