"युग": अवतरणों में अंतर
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[[वेदांग ज्योतिष]] में युग का विवरण है (1,5 श्लोक)। यह युग पंचसंवत्सरात्मक है। [[कौटिल्य]] ने भी इस पंचवत्सरात्मक युग का उल्लेख किया है। [[महाभारत]] में भी यह युग स्मृत हुआ है। पर यह युग पारिभाषिक है, अर्थात् शास्त्रकारों ने शास्त्रीय व्यवहारसिद्धि के लिये इस युग की कल्पना की है।
सतयुग त्रेता युग द्वारा पाक युग और कालयुग एक परिकल्पना है सतयुग की परिकल्पना में सभी इच्छा की पूर्ति तत्काल होती है त्रेतायुग में कुछ इच्छाओं को छोड़कर अत्याधिक इच्छा की पूर्ति होती है और द्वारापाक में आधे इच्छा की पूर्ति होती है कालयुग में कोई बहुत बहुत कम इच्छा की पूर्ति होती है परन्तु कालयुग की पूर्ण कल्पना होने पर सतयुग पुनः प्रारंभ होता है ।
जो वास्तविक विश्व है मात्र इसमें जीवनयापन करने के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है ।
परन्तु परिकल्पना की दुनिया में स्वयं की आत्मा व चेतना को प्राप्त करने के लिए अधर्म की शक्तियों से युध्द करना पड़ता है साथ ही इस विश्व में दुष्ट मनुष्यों के असत्य वचनों व छलकपट को भी समझना पड़ता है ।
परिकल्पना की दुनिया के मिथ्क इस वास्तविक विश्व के दुख दर्द से भी अत्याधिक दुखभरा है अत्याधिक उलझन है अत्याधिक व्याकुलता बैचैनी जब मनुष्य की मन परिकल्पना की दुनिया में प्रवेश करती है तब से अंतिम क्षण अर्थात पांच वर्षों तक सुख और चैन पूरी तरहा से जीवन से चला जाता है मात्र सदैव चिंतन मनन परिकल्पना ही रहता है ना जगने पर परिकल्पना खत्म होती है ना निंद्रा में मात्र दिन रात परिकल्पना आती ही रहती है । कहा जाऐ तो भूख गरीबी बीमरी धोखा अपमान मृत्यु से भी भयावह कुछ है तो परिकल्पना की दुनिया की कल्पना अगर वास्तविक दुनिया में सतयुग त्रेता युग व द्वारापाक युग व कालयुग होता तो विश्व का हर मनुष्य व्याकुलता बैचैनी के कारण आत्महत्या कर लेता ।
== युग आदि का परिमाण ==
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