"पञ्चभूत": अवतरणों में अंतर

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ज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय कंपन के लक्षण बताते हैं वहीं (स्वर-) योग सिद्धांत के अनुसार ये तत्व एक ख़ास शारीरिक लक्षण को बताते हैं।
 
शिव स्वरोदय ग्रंथ मानता है कि श्वास का ग्रहों, सूर्य और चंद्र की गतियों से संबंध होता है। ग्रंथ स्वर-विहीन (यानि तत्वों के यौगिक महत्व) ज्योतिष विद्या को भी बेकार मानता है<ref> शिव स्वरोदय से सत्रहवें श्लोक के अनुसार -<poem> स्वरहीनश्च दैवज्ञो नाथहीनं यथा गृहम। शास्त्रहीनं यथा वक्त्रं शिरोहीनं च यद्वपुः।। १७।। </poem> स्वर बिना सब व्यर्थ है। स्वर रहित ज्योतिष वैसा ही है जैसे बिना स्वामी का घर, शास्त्र विहीन मुख हो और सिर विहीन धड़ हो। </ref>।
 
 
 
मनुष्य पंचमहाभूत से निर्मित एक प्राणी है _____
::पहला भूत रस है ये तैरहा है इसके कारण लोगो के चेहरे की प्रतिक्रिया बदलाती रहती है हंसना रोना गुस्सा होना शांत होना ना चकित होना आदि ।
::दूसरा भूत कुण्डली ये चक्र कुण्डली नही है ये भी सात है मनुष्य की शक्ति बुध्दि सोच खुशी लिंग उम्र समझने की क्षमता है ।
::तीसरा भूत खून के रूप में जल वायु के रूप में सांस भूमि के रूप में भोजन व शरीर आकाश के रूप में शरीर के मुंह कान नाक का छिद्र व शरीर में खाली स्थान जहां से रक्त वायु आते जाते है अग्नि शरीर का तापमान है ।
::चौथा भूत इन्द्रियां आंख से देखना नाक से सुगन्ध कान से सुनना , मुंह से बोलना जिव्हा स्वाद लेना , त्वचा महसूस करना , मन और मस्तिष्क भी शरीर का अंग है इसलिए ये ही छठी इन्द्रि है मन से किसी भी स्थान वस्तु घटनाओं की कल्पना करना मस्तिष्क से गणना अंकलन अनुमान लगाना जैसे ठंड गर्मी बरसात कितनी होगी क्या समय हुआ होगा कल कौनसा दिन है आदि ।
::अंतिम व पांचवा भूत मनुष्य के भाव इच्छा है भाव किसी वस्तु मनुष्य की उपस्थिति में आनंदित पीड़ित खुश व दुखी होना ये भाव है इच्छा उम्र के अनुसार खेलना पढाई घुमाना शादी पैसा की इच्छा है ।
ये पंचमहाभूत मिलाकर एक मनुष्य का निर्माण करते है ।
सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों के पंचमहाभूत ही के क्रिया प्रतिक्रिया के कारण विश्व में मानव जीवन संचालित है ।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[महाभूत]]