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[[चित्र:Jain meditation.jpg|right|thumb|300px|जैन तपस्वी]]
[[Image:Fire rituals at a Hindu Wedding, Orissa India.jpg|right|thumb|300px|[[अग्नि]] को सर्वश्रेष्ठ तपस्वी माना जाता है। [[हिन्दू]] [[विवाह]] आदि के समय वर-कन्या अग्नि को ही साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करते हैं।]]
'''तपस्''' या '''तप''' का मूल अर्थ था [[प्रकाश]] अथवा प्रज्वलन जो [[सूर्य]] या [[अग्नि]] में स्पष्ट होता है।<ref>[https://books.google.com/books?id=uqlRAAAAcAAJ Monier Williams (1872). A Sanskrit-English Dictionary: Etymologically and philologically arranged.] Clarendon Press, Oxford. p. 363.</ref> किंतु धीरे-धीरे उसका एक रूढ़ार्थ विकसित हो गया और किसी उद्देश्य विशेष की प्राप्ति अथवा आत्मिक और शारीरिक अनुशासन के लिए उठाए जानेवाले दैहिक कष्ट को तप कहा जाने लगा।
 
नर से नारायण हो जाना ==
स्वयं के आत्मा ही परमात्मा है वही नारायण भी है और स्वयं की आत्मा स्वयं ही है ।
 
जब मनुष्य तपस्या करता है तो उसके हजारों प्रश्न के उत्तर चाहिए रहते है मैं क्या हूँ आत्मा जीवात्मा परमात्मा क्या है ये विश्व क्यो कब से है कब तक रहेगा इसकी रचना कैसी हुई इसका आकार क्या है जन्म मृत्यु क्यो है धर्म कथाओ के देवी देवता असुर राक्षस देव गंधर्व का वास्तविक में थे या नहीं स्वर्ग नरक है या नहीं संसारिक मनुष्य के सुख दुख का कारण क्या है पाप और पुन्य का परिभाषित अस्तित्व क्या है ऐसे हजारो प्रश्न के उत्तर मनुष्य संसार में खोजता है तो वह नर है परन्तु कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते है संसार में तो उसे अंतर्मन समझा देता है वही नारायण है जैसे पंचमहाभूत सम्पूर्ण विश्व के किसी भी ग्रंथ में उल्लेखित नही है मात्र इसे चेतना जागृत होने पर अंतर्मन से स्वतः चिंतन मनन होकर ज्ञात हो जाता है प्रायः सभी पंच तत्व जैसे अग्नि आकाश भूमि जल वायु को ही पंचमहाभूत समझते है जबकि पंचमहाभूत में प्रथम भूत पंच तत्व दूसरा भूत छैं इन्द्रियां तीसरा भूत तैरहा रस चौथा भूत सात कुण्डली और पांचवा भूत भाव इच्छा सोच विचार है ऐसे 550 प्रकार के ज्ञान मात्र चेतना जागृत होने पर होता है जैसे अंतरिक्ष भ्रम है पृथ्वी स्थिर है मनुष्य एक अरब जन्म लेता है परमात्मा व आत्मा एक है पाप पुन्य विश्व संचालन के लिए है सभी प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य मन की एक परिकल्पना है भीतर के मन के प्रश्न व संसार से जो असत्य ज्ञान मिला है उसको नष्ट करना चिंतन मनन व संसारिक धर्म ग्रंथ प्रचीन स्थलो व उन कथाओ के प्रमाण को ही अनंत ज्ञान का लक्ष्य है ।
 
नर से नारायण हो जाना अर्थात ज्ञान हो जाना की मेरी आत्मा परमात्मा है जिसकी स्वयं में ही पूजा भक्ति प्रर्थना करता हूँ कहा जाऐ तो परम् ब्रह्म कोई और नहीं मैं ही परम् ब्रह्म हूँ और उसका भक्त भी में ही हूँ इसका ज्ञान हो जाना ही नर से नारायण हो जाना है ।
 
== परिचय ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/तप" से प्राप्त