"आत्मा": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पूर्ववत किया - वार्ता कृप्या वि:नहीं देखें
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 3:
 
आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या [[गीता]] में किया गया है। आत्मा को [[शस्त्र]] से काटा नहीं जा सकता, [[अग्नि]] उसे जला नहीं सकती, [[जल]] उसे गीला नहीं कर सकता और [[वायु]] उसे सुखा नहीं सकती।<ref>श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 23</ref>
जिस प्रकार [[मनुष्य]] पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये [[वस्त्र]] धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है।<ref>श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 22</ref>
 
आत्मा ______ विश्व के स्त्री-पुरूष आपास में आत्मा से जुड़े है इसलिए वे अपने आत्मा के विपरीत जीवात्मा की ओर आकर्षित होते है उनके बीच प्रेम प्रसंग जो होता है उनमें कई विभिन्नता है ।
 
एक आत्मा के एक स्त्री व एक पुरूष ये हर जन्म के जीवनसाथी होते है इनमें स्त्री पूर्णतः पवित्र होती है हिन्दू धर्म में ऐसे स्त्रियों की संख्या सोलह करोड़ पांच लाख है । जैसे शिव शक्ति का अर्धनागेश्वरी रूप ।
 
आत्मा के कई जीवात्मा इनमें कई विभिन्नता है जैसे एक स्त्री और पांच पुरूष इनमें ये पांचों पुरूष स्त्री से आवश्य ही प्रेम प्रसंग में रहते है जैसे पांच पाण्डव एक द्रोपदी फिर ये पुरूष अन्य स्त्रियों से भी जुड़े रहते है इनकी संख्या दो तीन दस सैकड़ों व हजारों में होती है और वे स्त्रियाँ भी दो तीन दस सैकड़ों व हजारों पुरुषों से जुड़ी रहती इसलिए अधिकांश मनुष्य एक दूसरे प्रति आकर्षित होते है इनमें उम्र रिश्ते नाते का कोई मौल नहीं है ये विवाहित अविवाहित भी होते है ऐसे ही मनुष्य जन्मों के अनुसार जीवनसाथी बदलते रहते है ।
इसलिए कहा जाता है आत्मा ना स्त्री होती है ना पुरूष ।
 
मनुष्य की जीवात्मा जो आत्मा का ही अंश है वे स्त्री व पुरूष में विभाजित होते है कुछ जीवात्मा स्त्री पुरूष व किसी जन्म में नपुसंक बनाते है ।
 
जीवात्मा शरीर की प्राण ऊर्जा के रूप में रहती है जब वह सचेत कहा जाऐ तो नींद से जागता है तो वही प्राण शक्ति चेतना बन जाती है फिर मन बनाती है परन्तु आभा मण्डल के रूप में सदैव रहती है अचेत कहा जाने सोने पर चेतना मन में मिल जाती है और मन प्राण शक्ति में।
 
जब मनुष्य मृत्यु होती है तो उसकी जीवात्मा नए में शरीर प्रवेश करती है तब प्रायः बच्चों में मन ही रहता है जो क्रिया व प्रतिक्रिया करता रहता है कुछ बच्चों में चेतना का निर्माण तीन वर्ष की आयु में हो जाता है वे पढ़ाने लिखने बोलने व संसार के और कार्यो में सजग हो जाते है अधिकांश बच्चे सात वर्षों में ही चेतना का निर्माण होता है ।
जिसकी चेतना जल्दी बनी उसे विवेक बीस पच्चीस वर्षों में आ जाता है तथा वह समाज में जल्दी सफल रहता है और जिसकी चेतना सात वर्ष में बनी वह पच्चीस वर्षों का बाद कभी भी जीवन में सफल हो सकता है विवेक आवश्यक नहीं है की सब की जागे ये किसी भी उम्र में जगाती है या फिर कभी भी नहीं जगती है अधिकांश पौढ़ वृध्द विकशील रहते है बहुत ही कम किशोर युवा विवेकशील रहते है ।
कहा जाऐ तो देश दुनिया व परिवार के कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति करते हुए शांति बनाए रखना आसपास के लोगों के साथ और लोगों के इच्छा सोच विचार को समझना व देश दुनिया समाज के साथ कैसा रहना चाहिए जिसे वर्तमान व भविष्य सुखद रहे ।
 
== जैन दर्शन ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आत्मा" से प्राप्त