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पंक्ति 337:
:करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।
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।। इति राम सुन्दर कृत श्री शनि चालीस सम्पूर्णम् ।।
== शनिवज्रपञ्जर-कवचम् ==