"शनि (ज्योतिष)": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 342:
:नीलाम्बरो नीलवपुः कीरीटी गृधस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
:चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्न: सदा ममता स्याद् वरदः प्रशान्तः।।१ ।।
::::::::'''ब्रह्मा उवाच'''
:श्रृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीड़ाहरं महत्। कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमुत्तमम्।।२।।
|