"शनि (ज्योतिष)": अवतरणों में अंतर

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:अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे। कवचं पठते नित्यं न पीड़ा जायते क्वचित्।।११।।
:इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा। द्वादशा-ऽष्टम-जन्मस्थ-दोषान्नशायते सदा। जन्मलग्नस्थितान दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।१२।।
;।। इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनिवज्रपञ्जर-कवचं सम्पूर्णम् ।।
 
== शनि संबंधी रोग ==