"राजा राममोहन राय": अवतरणों में अंतर

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राजा राममोहन राय की दूर‍दर्शिता और वैचारिकता के सैकड़ों उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। [[हिन्दी]] के प्रति उनका अगाध स्नेह था। वे रू‍ढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे। वे स्वतंत्रता चाहते थे लेकिन चाहते थे कि इस देश के नागरिक उसकी कीमत पहचानें।
 
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== जीवनी ==
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== पत्रकारिता ==
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', '[[संवाद कौमुदी]]', मिरात-उल-अखबार ,(एकेश्वरवाद का उपहार) [[बंगदूत]] जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें [[बांग्ला]], [[हिन्दी]] और [[फारसी]] भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। उनके जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा।
 
== आलोचना ==
अंग्रेजी शासन, अंग्रेजी भाषा एवं अंग्रेजी सभ्यता की प्रशंशा करने के लिये राममोहन राय की आलोचना की जाती है। उन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया। उनकी अन्तिम सांस भी ब्रिटेन में निकली। कुछ न<ref>{{Cite book|प्रमुख पुस्तकें=1 ईश के नीति वचन शांति और खुशहाली का मार्ग (1820)
2 हिन्दू उत्तराधिकारी नियम
3 संवाद कौमुदी अथवा प्रज्ञाचाँद (बंगाली भाषा में)
4 मिरातुल अखबार अथवा बुध्दि दर्पण (पारसी भाषा में)}}</ref>लोगों का विचार है कि वे अपनी जमींदारी को चमकाते हुए भारतीय समाज में हीन भावना भरने का कार्य कर रहे थे और अंग्रेजों के अदृश्य सिपाही थे। उन्होने भारत में अंग्रेजी राज्य (गुलामी) की स्थापना एवं उसके सशक्तीकरण के लिये रास्ता तैयार किया। वे अंग्रेजी कूटनीति को समझ नहीं सके और भारतीय जनता का सही मार्गदर्शन नहीं कर सके।सके<ref>{{Cite book|राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित पुस्तकें:=}}</ref>द्वद्वद्व
 
== इन्हें भी देखें ==