"जलियाँवाला बाग़": अवतरणों में अंतर

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'''[https://shortstoriesofindia.blogspot.com/2019/03/13-april-1919-jallianwala-bagh-massacre.html जलियाँवाला बाग़]''' <ref>{{Cite web|url=https://shortstoriesofindia.blogspot.com/2019/03/13-april-1919-jallianwala-bagh-massacre.html|title=Short Stories of India|last=|first=|date=|website=|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>[[अमृतसर]] के [[स्वर्ण मंदिर]] के पास का एक छोटा सा बगीचा है जहाँ [[13 अप्रैल]] [[1919]] को ब्रिगेडियर जनरल [[रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर]] के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।
 
इसी घटना की याद में यहाँ पर स्मारक बना हुआ है।
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[[चित्र:Jallianwallah.jpg|thumb|कांड के महीनों बाद 1919 में बाग़ का दृश्य]]
[https://shortstoriesofindia.blogspot.com/2019/03/13-april-1919-jallianwala-bagh-massacre.html बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919] को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में रोलेट एक्ट, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों व दो नेताओं [[सत्यपाल]] और [[सैफ़ुद्दीन किचलू]] की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। करीब 5,000 लोग जलियाँवाला बाग में इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे।
 
जब नेता बाग़ में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। सैनिकों ने बाग़ को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। १० मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियाँवाला बाग़ उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।