"भारतीय दर्शन": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Yajnavalkya and Janaka.jpg|right|thumb|300px|वैदिक काल के ऋषियों ने हिन्दुओं के सबसे प्राचीन दर्शन की नींव रखी। [[आरुणि]] और [[याज्ञवल्क्य]] (८वीं शताब्दी ईसापूर्व) आदि प्राचीनतम हिन्दू दार्शनिक हैं।]]
[[भारत]] में '[[दर्शन]]' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का साक्षात्कार। मानव के दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य का दर्शन होता है। [[मनु]] का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डाल सकता तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने की कोशिश की है। भारतीय दार्शनिकों के बारे में [[टी एस एलियट]] ने कहा था-<ref>Jeffry M. Perl and Andrew P. Tuck (1985). "The Hidden Advantage of Tradition: On the Significance of T. S. Eliot's Indic Studies". Philosophy East & West. University of Hawaii Press. 35. Retrieved 2012-08-13.</ref>
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==== वेदान्त दर्शन ====
[[चित्र:Raja Ravi Varma - Sankaracharya.jpg|right|thumb|300px|[[आदि शंकराचार्य]] ने अद्वैत वेदान्त दर्शन को ठोस आधार प्रदान किया।]]
आगे चलकर वेदान्त के अनेकानेक सम्प्रदाय (अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत, विशिष्टाद्वैत आदि) बने।
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