"नव वर्ष": अवतरणों में अंतर

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भारतीय नववर्ष की विशेषता   -
 
ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हमारेहिन्दू लिएनववर्ष आनेअंग्रेजी वालामाह संवत्सरके २०७५मार्च बहुत- हीअप्रैल भाग्यशालीमें होगापड़ता ,है। क़्योंकिइसी इसकारण वर्षभारत भीमे चैत्रसभी शुक्लशासकीय प्रतिपदाऔर कोअशासकीय रविवारकार्य है, तथा  शुदीवित्त एवम वर्ष ‘शुक्लभी पक्षअप्रैल एक(चैत्र) ही मास है।से प्रारम्भ होता है।
 
चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था।हमाराथा। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है|है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है |है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है |है।
 
पेड़-पोधों मे फूल ,मंजर ,कली इसी समय आना शुरू होते है ,  वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है |है। जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है |है। इसी दिन ब्रह्मा जी  ने सृष्टि का निर्माण किया था |था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था |था। नवरात्र की शुरुअातशुरुआत इसी दिन से होती है |है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है |है।
 
परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।
 
न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए,  श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि  के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था |था। आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी |थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है |है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल *  *विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है।
 
कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी।
 
चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में।
 
चारों ओर पकी फसल का दर्शन ,  आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई , हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई।
 
नई फसल घर मे आने का समय भी यही है |है। इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है , जिससे पेड़ -पौधे , जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है |है। लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय  गीत गुनगुनाने लगते है |है। गौर और गणेश कि पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान मे कि जाती है |है। चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है ,  मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है | है।[[चित्र:Reflections of Earth 9.jpg|thumb|right|300px|नये साल के अवसर पर फ़्लोरिडा में आतिशबाज़ी का एक दृश्य।]]
'''नव वर्ष''' एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।