"आजीविका": अवतरणों में अंतर

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* '''अन्य व्यक्तिगत गुण''' : स्वरोजगार में लगे व्यक्ति में ईमानदारी, गंभीर तथा परिश्रमी जैसे गुणों का होना आवश्यक है।
 
==आजीविका के सिद्धान्त==
===परम्परावादी सिद्धान्त===
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त विभिन्न परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के विचारों में समन्वय का परिणाम है। यह पूर्ण रोजगार की धारणा पर आधारित है। इसलिए इस सिद्धान्त के अनुसार, "पूर्ण प्रतियोगी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति एक सामान्य स्थिति होती है।" रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त के अनुसार पूर्ण रोजगार एक ऐसी स्थिति है जिसमें उन सब लोगों को रोजगार मिल जाता है जो प्रचलित मजदूरी पर काम करने को तैयार हैं। यह अर्थव्यवस्था की एक ऐसी स्थिति है जिसमें अनैच्छिक बेरोजगारी नहीं पाई जाती। लरनर के अनुसार, "पूर्ण रोजगार वह अवस्था है जिसमें वे सब लोग जो मजदूरी की वर्तमान दरों पर काम करने के योग्य तथा इच्छुक हैं, बिना किसी कठिनाई के काम प्राप्त कर लेते हैं।"
 
====रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की मान्यताएं====
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैः
 
1. रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
 
2. रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त के अनुसार कीमतों, मजदूरी तथा ब्याज की दर में लोचशीलता पाई जाती है अर्थात् आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये जा सकते है।
 
3. इस सिद्धान्त के अनुसार मुद्रा केवल एक आवरण मात्र है। इसका आर्थिक क्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
 
4. आर्थिक क्रियाओं में सरकार की ओर से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं है। बाजार मांग और पूर्ति की शक्तियां कीमतों को निर्धारित करने के लिए स्वतन्त्र है।
 
5. रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त अल्पकाल में लागू होता है।
 
6. बचत और निवेश दोनों ही ब्याज की दर पर निर्भर करते है।
 
7. यह भी मान्यता है कि अर्थव्यवस्था एक बन्द अर्थव्यवस्था है। इस पर विदेशी व्यापार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
 
उत्पादन में वृद्धि करने के लिए जैसे-जैसे श्रम की अधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है श्रम की सीमान्त भौतिक उत्पादकता कम होती जाती है। इसलिये उत्पादक अधिक श्रम की मांग तभी करेगा जब वास्तविक मजदूरी या नकद मजदूरी (कीमत स्तर च् स्थिर रहता है) कम हो जाती है। इस प्रकार, श्रम की मांग मजदूरी का घटता हुआ फलन है अर्थात् मजदूरी के बढ़ने पर श्रम की मांग कम होती है तथा मजदूरी के कम होने पर श्रम की मांग बढ़ती जाती है।
 
====रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त के निष्कर्ष====
 
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त के मुख्य निष्कर्ष निम्ननिलित हैः
 
1. पूर्ण रोजगार की स्थिति एक सामान्य स्थिति है।
 
2. पूर्ण रोजगार का अर्थ है अनैच्छिक बेरोजगारी की अनुपस्थिति। पूर्ण रोजगार की अवस्था में संघर्षात्मक, ऐच्छिक आदि कई प्रकार की बेरोजगारी पाई जा सकती है।
 
3. सन्तुलन की अवस्था केवल पूर्ण रोजगार की दशा में ही सम्भव है।
 
4. सामान्य बेरोजगारी सम्भव नही है परन्तु अल्पकाल के लिये असाधारण परिस्थितियों में आंशिक बेरोजगारी पाई जा सकती है।
 
====रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त पर केन्ज़ की आपत्तियाँ ====
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त पर केन्ज़ की आपत्तियों या आलोचनाओं को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता हैः
 
*1. [['से' का नियम|‘से’ का बाजार नियम]] अवास्तविक हैः
 
केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त के एक मुख्य आधार ‘से’ के बाजार नियम की कटु आलोचना की है। इस नियम की यह मान्यता अवास्तविक है कि पूर्ति अपनी मांग का स्वयं निर्माण करती है। इसका कारण यह है कि लोग अपनी सारी आय को खर्च नहीं करते और कुछ भाग की बचत कर लेते है। इसके फलस्वरुप, कुल मांग कुल पूर्ति से कम हो जाती है।
 
*2. बचत और निवेश ब्याज सापेक्ष नहीं हैः
 
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी भ्रमपूर्ण है कि बचत और निवेश, ब्याज के माध्यम से बराबर हो जाते है। केन्ज के अनुसार बचत आय पर तथा निवेश ब्याज की दर और पूंजी की सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करता है। इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि ब्याज की दर मे परिवर्तन होने से बचत तथा निवेश दोनों में परिवर्तन हो।
 
*3. मज़दूरी की लोचशीलता तर्क की आलोचनाः
 
केन्ज़ ने मज़दूरी की लोचशीलता तर्क की भी आलोचना की है।उनके अनुसार मजदूरी की दर को एक सीमा से अधिक कम करना व्यावहारिक रुप से सम्भव नहीं है।
 
*4. नकद मजदूरी में कटौती करके रोजगार को नहीं बढ़ाया जा सकताः
 
केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त की आलोचना इसलिए भी की है क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार नकद मजदूरी में कटौती करके रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। केन्ज के अनुसार ऐसा सम्भव नही है।
 
*5. अल्पबेरोजगार सन्तुलन की सम्भावनाः
 
इस सिद्धान्त का यह निष्कर्ष भी सही नहीं है कि अर्थव्यवस्था में सामान्यतः पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति केवल पूर्ण रोजगार की स्थिति में ही सम्भव है। केन्ज के अनुसार, प्रत्येक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति में भी बेरोजगारी पायी जा सकती है।
 
*6. अर्थव्यवस्था में स्वयं समन्वय का अभावः
 
केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी उचित नहीं है कि आर्थिक प्रणाली स्वयं समायोजित होती है।
 
*7. सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति की अस्वीकृतिः
 
केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह मान्यता वास्तविक नहीं है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बिना सरकारी हस्तक्षेप के आर्थिक शक्तियां स्वयं ही बेरोजगारी को दूर करने में सफल होगी। 1930 की महामन्दी के अनुभवों के आधार पर केन्ज ने बेरोजगारी के समाधान के लिए परम्परावादी अर्थशास्त्रियों की सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति को अस्वीकार कर दिया।
 
== इन्हें भी देखें ==