"आजीविका": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त पर केन्ज़ की आपत्तियों या आलोचनाओं को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता हैः
*'''1. [['से' का नियम|‘से’ का बाजार नियम]] अवास्तविक हैः''' केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त के एक मुख्य आधार ‘से’ के बाजार नियम की कटु आलोचना की है। इस नियम की यह मान्यता अवास्तविक है कि पूर्ति अपनी मांग का स्वयं निर्माण करती है। इसका कारण यह है कि लोग अपनी सारी आय को खर्च नहीं करते और कुछ भाग की बचत कर लेते है। इसके फलस्वरुप, कुल मांग कुल पूर्ति से कम हो जाती है।▼
*'''2. बचत और निवेश ब्याज सापेक्ष नहीं हैः''' रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी भ्रमपूर्ण है कि बचत और निवेश, ब्याज के माध्यम से बराबर हो जाते है। केन्ज के अनुसार बचत आय पर तथा निवेश ब्याज की दर और पूंजी की सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करता है। इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि ब्याज की दर मे परिवर्तन होने से बचत तथा निवेश दोनों में परिवर्तन हो।▼
▲केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त के एक मुख्य आधार ‘से’ के बाजार नियम की कटु आलोचना की है। इस नियम की यह मान्यता अवास्तविक है कि पूर्ति अपनी मांग का स्वयं निर्माण करती है। इसका कारण यह है कि लोग अपनी सारी आय को खर्च नहीं करते और कुछ भाग की बचत कर लेते है। इसके फलस्वरुप, कुल मांग कुल पूर्ति से कम हो जाती है।
*'''3. मज़दूरी की लोचशीलता तर्क की आलोचनाः''' केन्ज़ ने मज़दूरी की लोचशीलता तर्क की भी आलोचना की है।उनके अनुसार मजदूरी की दर को एक सीमा से अधिक कम करना व्यावहारिक रुप से सम्भव नहीं है।▼
*'''4. नकद मजदूरी में कटौती करके रोजगार को नहीं बढ़ाया जा सकताः''' केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त की आलोचना इसलिए भी की है क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार नकद मजदूरी में कटौती करके रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। केन्ज के अनुसार ऐसा सम्भव नही है।▼
▲रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी भ्रमपूर्ण है कि बचत और निवेश, ब्याज के माध्यम से बराबर हो जाते है। केन्ज के अनुसार बचत आय पर तथा निवेश ब्याज की दर और पूंजी की सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करता है। इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि ब्याज की दर मे परिवर्तन होने से बचत तथा निवेश दोनों में परिवर्तन हो।
*'''5. अल्पबेरोजगार सन्तुलन की सम्भावनाः''' इस सिद्धान्त का यह निष्कर्ष भी सही नहीं है कि अर्थव्यवस्था में सामान्यतः पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति केवल पूर्ण रोजगार की स्थिति में ही सम्भव है। केन्ज के अनुसार, प्रत्येक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति में भी बेरोजगारी पायी जा सकती है।▼
*'''6. अर्थव्यवस्था में स्वयं समन्वय का अभावः''' केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी उचित नहीं है कि आर्थिक प्रणाली स्वयं समायोजित होती है।▼
▲केन्ज़ ने मज़दूरी की लोचशीलता तर्क की भी आलोचना की है।उनके अनुसार मजदूरी की दर को एक सीमा से अधिक कम करना व्यावहारिक रुप से सम्भव नहीं है।
*'''7. सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति की अस्वीकृतिः''' केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह मान्यता वास्तविक नहीं है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बिना सरकारी हस्तक्षेप के आर्थिक शक्तियां स्वयं ही बेरोजगारी को दूर करने में सफल होगी। 1930 की महामन्दी के अनुभवों के आधार पर केन्ज ने बेरोजगारी के समाधान के लिए परम्परावादी अर्थशास्त्रियों की सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति को अस्वीकार कर दिया।▼
▲केन्ज ने परम्परावादी रोजगार सिद्धान्त की आलोचना इसलिए भी की है क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार नकद मजदूरी में कटौती करके रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। केन्ज के अनुसार ऐसा सम्भव नही है।
▲इस सिद्धान्त का यह निष्कर्ष भी सही नहीं है कि अर्थव्यवस्था में सामान्यतः पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति केवल पूर्ण रोजगार की स्थिति में ही सम्भव है। केन्ज के अनुसार, प्रत्येक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है तथा सन्तुलन की स्थिति में भी बेरोजगारी पायी जा सकती है।
▲केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह धारणा भी उचित नहीं है कि आर्थिक प्रणाली स्वयं समायोजित होती है।
▲केन्ज के अनुसार रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की यह मान्यता वास्तविक नहीं है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बिना सरकारी हस्तक्षेप के आर्थिक शक्तियां स्वयं ही बेरोजगारी को दूर करने में सफल होगी। 1930 की महामन्दी के अनुभवों के आधार पर केन्ज ने बेरोजगारी के समाधान के लिए परम्परावादी अर्थशास्त्रियों की सरकारी हस्तक्षेप न करने की नीति को अस्वीकार कर दिया।
== इन्हें भी देखें ==
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