"पन्ना ज़िला": अवतरणों में अंतर
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==मंदिर==
===श्री प्राणनाथ जी मंदिर===
श्री प्राणनाथ जी मंदिर सम्पूर्ण निजानंद सम्प्रदाय [प्रणामी संप्रदाय] के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मंदिर है। निजानंद का तात्पर्य ही है कि जहां हमें अपनी आनंद प्राप्त हो वह निजानंद है । आनन्द की यह सम्पूर्ण यात्रा अंदर की है बाहर की नहीं । वास्तविक एवं शाश्वत आनंद की खोज एवं प्राप्ति हम अपने अंतस में ही कर सकते हैं । इस मंदिर में कोई मूर्ति न होकर एक ग्रंथ की पूजा होती है जिसे श्री तारतम वाणी कहते हैं । तारतम शब्द में तम का तात्पर्य अंधकार से है और सम्पूर्ण तारतम का अर्थ ऐसे ग्रंथ अथवा ज्ञान से है जो हमे सत्य से अवगत कराता है । हमारे अंदर की अज्ञानता को दूर करता है । इसलिए इस मंदिर में इस ग्रंथ को ही परमात्मा का स्वरूप मानकर ( क्योंकि इसमें वर्णित ज्ञान को ग्रहण करने से परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ) सिंहासन पर पधराया गया है और श्रद्धालुओं के द्वारा समय समय पर नए नए श्रृंगारों ( मुरली मुकुट इत्यादि ) से सुसज्जित किया जाता रहा है । इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं समझना चाहिए कि यह भगवान श्री कृष्ण जी का मंदिर है । यहाँ शरद पूर्णिमा बहुत उल्लास का समय होता है । हर वर्ष शरद पूर्णिमा के अवसर पर दूर दूर से सुन्दरसाथ ( इस सम्प्रदाय के लोग आपस मे एक दूसरे को सुन्दरसाथ कहते हैं जिसका तात्पर्य है कि जिसने अपने अंदर को पवित्र करने के लिए धर्म का सहारा लिया है और निरंतर प्रयासरत हैं ) आते हैं । यहां पर आकर आप निम्न विषयों के बारे में जान सकते हैं जैसे-
1. परमात्मा कौन है व कहाँ है ?
2. क्या हम उसे देख सकते हैं ?
3. मैं कौन हूँ ?
4. मृत्यु के बाद मैं कहाँ जाऊंगा ?
5. क्या मेरा पुनः जन्म होगा ?
6. जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
7. हमारी आत्मा का अनादि प्रियतम अथवा हमारी आत्मा का स्वामी कौन है और वह कहां पर है ?
इन प्रश्नों के अतिरिक्त हम यह भी जान सकते हैं कि
8. इस संसार मे सुखी कैसे रहा जाए ?
9. हमारे सबसे बड़े शत्रु कौन हैं ?
10. अपने मन पर विजय कैसे प्राप्त करें ?
11. क्या अध्यात्म हमारी भौतिक उन्नति में सहायक है ?
===बल्दाऊ जी मंदिर===
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