"गुरु गोबिन्द सिंह": अवतरणों में अंतर

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[[काश्मीरी पण्डित|काश्मीरी पण्डितों]] का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाये जाने के विरुद्ध शिकायत को लेकर तथा स्वयं [[इस्लाम]] न स्वीकारने के कारण ११ नवम्बर १६७५ को औरंगजेब ने दिल्ली के [[चांदनी चौक]] में सार्वजनिक रूप से उनके पिता [[गुरु तेग बहादुर]] का सिर कटवा दिया। इसके पश्चात [[वैशाखी]] के दिन २९ मार्च १६७६ को गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए।
 
१०वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही। शिक्षा के अन्तर्गत लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा धनुष चलाना आदि सम्मिलित था। १६८४ में उन्होने [[चंडी दी वार]] कि रचना की। १६८५ तक आपवह [[यमुना नदी]] के किनारे [[पाओंटा साहिब|पाओंटा]] नामक स्थान पर रहे।
 
गुरु गोबिन्द सिंह की तीन पत्नियाँ थीं। 21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका [[विवाह]] माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर [[बसंतगढ़]] में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई संतान नहीं था पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।