"गुणसूत्र": अवतरणों में अंतर

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धतूरा स्ट्रामोनिअम (Datura stramonium) में द्विगुणित अवस्था में 12 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं और अर्धसूत्रण के समय द्विसंयोजक बनते हैं। इसके ऑटोपॉलिप्लॉइड में 12 चतुष्क (48) गुणसूत्र होते है और अर्धसूत्रण के समय 12 चतु:संयोजक बनते हैं। इसी भाँति प्रिम्यूला साइनेंसिस (Primula sinensis) से द्विगुणित पौधे में 12 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं और ऑटोटेट्राप्लॉइड में 48 सूत्र होते हैं एवं अर्धसूत्रण के समय इसमें 9 से 11 चतु:संयोजक और 2 से 6 तक द्विसंयोजक बनते हैं। सोलेमन लाइकोपरसिकॉन (Solanum lycopersicon) के द्विगुणित में 12 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं और उसके ऑटोटेट्राप्लॉइड में 12 चतुष्क (48) गुणसूत्र। ये सब पौधे हैं।
 
क्रीपिस रुब्रा (Crepis rubra) औरा क्रीपिस फ़ोएटिडा (Crepis foctida) में 5 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं। इनके सूत्र एक दूसरे से बहुत भिन्न नहीं होते और इनके संकरण से उत्पन्न संकर में अर्धसुत्रण के समय 5 द्विसंयोजक बनते हैं। इसके ऐलोपॉलिप्लॉइड में 20 कें द्रकसूत्रकेंद्रकसूत्र होते हैं और अर्धसूत्रण में 0 से 5 चतु:संयोजक बनते हैं और 0 से 10 द्विसंयोजक। स्पष्ट है कि ऐलोटेट्राप्लॉइड बहुत उर्वर नहीं होगा। प्रिम्यूला फ्लोरिबंडा (Primula floribunda) और प्रिम्यूला रेस्टिसिलेटा (Primula resticillata) दोनों में ही 9 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं, जो एक दूसरे के प्राय: समान होते हैं। इनके संकरण से जो संकर बनाता है उसकेउसे प्रित्यूजा किवेन्सिस कहते हैं। इसमें भी 9 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं। अर्धसूत्रण के समय में युग्मन क्रिया सफल होती है और 9 द्विसंयोजक बनते हैं। सूत्रों के द्विगुण होने से जो ऐलोपॉलिप्लाइड बनता है उसमें 9 चतुष्क (36) सूत्र होते हैं और ऐसे पौधे में 12 से 18 तक द्विसंयोजक बनते हैं और 0 से 3 तक चतु:संयोजक। स्पष्ट है कि चतु:संयोजाकोंसंयोजकों की संख्या बहुत कम है और कभी -कभी एक भी चतु:संयोजक नहीं बनता।
 
मूली (Raphanus) और करमकल्ला (Brassica) में से प्रत्येक में 9 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं, जो एक दूसरे से पूर्णत: भिन्न होते हैं। इनके संकरण से उत्पन्न संकर रैफ़ानस ब्रैसिका (Raphanus-Brassica) में भी 9 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं; परंतु अर्धसूत्रण में एक हीभी द्विसंयोजक नहीं बनता, क्योंकि युग्मन की क्रिया सफल नहीं होती और सभी सूत्र अयुग्मित रह जाते हैं जिससे 12 एक-संयोजक बनते हैं। इसके सूत्र द्विगुण से उत्पन्न ऐलोटेट्राप्लॉइड में 12 जोड़ी सूत्र होते हैं और अर्धसूत्रण में 12 संयोजक बनते हैं, चतु:संयोजक एक भी नहीं। परिणाम यह होता है कि रैफ़ानस-ब्रैसिका-ऐलाटेट्राप्लॉइड बहुत उर्वर होता है, यद्यपि रैफ़ानस-ब्रैसिका-द्विगुणित बंध्या होता है।
 
जंतुओं में पॉलिप्लॉइडी बहुत कम पाई जाती है पर यह अनिषेकजनित (Parthenogenetic) जंतुओं में बहुधा पाई जाती है। पौधों में बहुत सी नई जातियाँ पॉलिप्लॉइड के कारण उत्पन्न हुई होंगी। इसका प्रमाण इससे मिलता है कि ऐंजिऔस्पर्मोंऐंजियोस्पर्म्स (Angiosperms) की लगभग आधी जातियाँ ऐसी है जिनके परिपक्व युग्मकों (Gametes) के गुणसूत्रों की संख्या किसी संबंधित जाति के युग्मकीय गुणसूत्र की संख्या की गुणित है। गेहूँ की कई जातियाँ हैं। इन जातियों की मूल युग्मकीय केंद्रकसुत्र संख्या 7 है। गुणसूत्रों की संख्या गेहूँ की जातियों में 7 की गुणित 14,21,42 तथा 49 तक पाई जाती है। इसी भाँति तंबाकू की भिन्न -भिन्न जातियों में गुणसूत्रों की संख्या 12 अथवा 12 की गुणित 24 होती है। पौधों में प्रयोग द्वारा बहुत से पॉलिप्लॉइड बनाए गए हैं, जिनमें एकात्मक सूत्रों के दो कुलक होते हैं। ये उर्वर होते हैं।
 
इसमें संदेह नहीं कि कोशिकाद्रव्य, [[केंद्रक]] के नियंत्रण में कार्यशील होता है। अनेक प्रकार के कोशिकासमूह अन्यान्य कार्यों के संचालन में लगे रहते हैं। उदाहरणत: अग्न्याश (Pancreas) की एक्सोक्राइन (Excorine) कोशिकाएँ विशेष पाचक किण्वज उत्पन्न करती हैं। गुदगुदा की नलिका की कोशिकाएँ रुधिर से यूरिया निकाल लेती हैं और यकृत की कोशिकाएँ ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में परिणत करके एकमित कर लेती हैं। स्पष्ट है कि किसी भी प्राणी की प्रत्येक कोशिका में उसके सब जीन (Gene) साधारणत: उपस्थित होते हैं। इसलिये भिन्न -भिन्न प्रकार की कोशिकाओं के विविध प्रकार के प्रोटीनों (जिनकी वे बनी है) की उत्पत्ति में कुछ उपयुक्त जीन तो सक्रिय रहे होंगे और शेष सब निष्क्रिय हो गए होंगे ओर उनकी सक्रियता के संबंध में भी यही बात होती होगी।
 
== इन्हें भी देखें ==