"चामुंडा": अवतरणों में अंतर

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हजारों वर्ष पूर्व ""[[दुर्गासप्तशती]]" नामक देवी महात्म्य के अनुसार धरती पर [[शुम्भ और निशुम्भ]] नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा धरती व स्वर्ग पर काफी अत्याचार किया गया। जिसके फलस्वरूप देवताओं व मनुष्यो ने हिमालय में जाकर देवी [[पार्वती|भगवती]] की आराधना की। लेकिन स्तुति में किसी भी देवी का नाम नही लिया। इसके पश्चात शंकर जी की पत्नी देवी पार्वती वहां मान सरोवर पर स्नान करने आई। उन्होंने देवताओ से पूछा कि किसकी आराधना कर रहे हो ? तब देवता तो मौन हो गए लेकिन क्योंकि भगवती के स्वरूप को तो [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव]] भी नही जानते। तो फिर इन्द्रादि देवता कैसे बता सकते है कि वह कौन है, इसलिये वह मौन हो गए। लेकिन माँ भगवती ने देवी पार्वती जी के शरीर मे से प्रगट होकर पार्वती को कहा देवी यह लोग मेरी ही स्तुति कर रहे है। में आत्मशक्ति स्वरूप परमात्मा हूँ। जो सभी की आत्मा में निवास करती हूं।
 
[[पार्वती]] जी के शरीर से प्रगट होने के कारण मा दुर्गा का एक नाम कोशिकी भी पड़ गया। कोशिकी को शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने देख लिया और उन दोनो से कहा महाराज आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इन्द्र का [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]] भी आप ही के पास है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत देवी कोशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनो लोकों के राजा है और वो दोनो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता कोशिकी के पास गया और दोनो दैत्यो द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। <ref>https://ambaa.org/pdf/devii_mahatmyam_2.pdf</ref>
 
यह सारी बाते दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनो कोशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्‍साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ। चण्ड और मुण्ड देवी कोशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी कौशिकी ने अपने [[आज्ञा चक्र|आज्ञाचक्र]] भृकुटि (ललाट) से अपना एक ओर स्वरूप काली रूप धारण कर लिया और असुरो का उद्धार करके चण्ड ओर मुण्ड को अपने निजधाम पहुंचा दिया। उन दोनो असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड गया।
 
आध्यात्म में चण्ड प्रवर्त्ति ओर मुण्ड निवर्ती का नाम है और माँ [[पार्वती|भगवती]] प्रवर्त्ति ओर निवर्ती दोनो से जीव छुड़ाती है और मोक्ष कर देती है। इसलिये जगदम्बा का नाम चामुंडा है।