"आंग्लिकाई ऐक्य": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 2:
 
==इतिहास==
===स्थापना===
[[हेनरी अष्टम]] के राज्यकाल (सन् १५०९-१५५७ ई.) में लूथर ने जर्मनी में [[प्रोटेस्टैंट धर्म]] चलाया। इसके विरोध में हेनरी अष्टम ने १५२१ ई. में एक ग्रंथ लिखा जिसमें उन्होंने रोम के बिशप (पोप) के ईश्वरदत्त अधिकार का प्रतिपादन किया। इसपर हेनरी को रोम की ओर से धर्मरक्षक की उपाधि मिली (यह आज तक इंग्लैंड के राजाओं की उपाधि है)। बाद में पोप ने हेनरी का प्रथम विवाह अमान्य ठहराने तथा इसको दूसरा विवाह कर लेने की अनुमति देने से इंकार किया। इसके परिणामस्वरूप पार्लियामेंट ने हेनरी के अनुरोध से एक अधिनियम स्वीकार किया जिसमें राजा को [[चर्च ऑव इंग्लैंड]] का परमाधिकारी घोषित किया जाता था। (ऐक्ट ऑव सुप्रिमेसी १५३१-ई.)। इस महत्वपूर्ण परिवर्तन के बाद हेनरी अष्टम ने जीवन भर प्रोटेस्टैंट विचारों का विरोध कर काथलिक धर्म सिद्धांतों को अक्षुण्ण बनाए रखने का सफल प्रयास किया। इंग्लैंड के गिरजे का परमाधिकारी होने के नाते उसने मठों की संपत्ति अपनाकर उनका उन्मूलन किया।
 
Line 23 ⟶ 24:
(३) यह नितांत स्वाभाविक प्रतीत होता है कि जिस धर्म में उपर्युक्त परस्पर विरोधी काथलिक और एवेंजेलिकल विचारधाराओं की गुंजाइश थी, वहाँ कुछ लोग समन्वय की ओर झुक जाते तथा सिद्धांत को कम महत्व देते। उनके अनुसार धर्मसिद्धांत ईश्वर द्वारा प्रकट किए हुए धार्मिक सत्य का अंतिम सूत्रीकरण नहीं है, ये युगविशेष की धार्मिक भावनाओं की दार्शनिक अभिव्यक्ति मात्र हैं। १७वीं शताब्दी में इस दल का नाम 'लैटिट्यूडिनेरियन' रखा गया था, १८वीं शताब्दी में उसे 'लिबरल' तथा बाद में 'ब्राड चर्च' कहा गया। आजकल इसके लिए 'माडर्निज़्म' शब्द का भी प्रयोग होने लगा है।
 
===विस्तार===
ऐंग्लिकन धर्म का क्षेत्र इंग्लैंड तक सीमित नहीं रहा। राजनीतिक प्रभाव के फलस्वरूप वह स्काटलैंड तथा आयरलैंड में फैल गया था किंतु संसार भर में इसके व्यापक प्रसार का श्रेय अंग्रेज प्रवासियों तथा मिशनरियों को है। तीन मिशनरी संस्थाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-सोसाइटी फ़ार प्रोमोटिंग क्रिश्चियन नालेज (जो एस.पी.सी.के. अक्षरों से विख्यात है, सन् १६९८ ई. में संस्थापित)। सोसाइटी फ़ार द प्रोपेगेशन ऑव द गास्पेल (एस.पी.जी.-संस्थापित सन् १७०१ ई.), चर्च मिशनरी सोसाइटी (सी.एम.एस.-संस्थापित सन् १७९९ ई.)। आजकल ऐंग्लिकन समुदाय के निम्नलिखित प्रांत पूर्ण रूप से संगठित हैं-द चर्च ऑव इंग्लैंड (दो प्रांत, कैंटरबरी और यार्क), द चर्च ऑव आयरलैंड, दि एपिस्कोपल चर्च इन स्काटलैंड, द चर्च इन वेल्स (वह सन् १९१४ ई. में कैंटरबरी से अलग हो गया था); द प्रोटेस्टैंट एपिस्कोपल चर्च इन द यूनाइटेड स्टेट्स ऑव अमेरिका; द चर्च ऑव इंडिया, पाकिस्तान, बर्मा ऐंड सिलोन (सन् १९४७ ई. के बाद लगभग २,५०,००० सदस्य; सन् १९४७ ई. में दक्षिण भारत के प्राय: सभी प्रोटेस्टैंट तथा लगभग ५,००,००० ऐंग्लिकन एक ही संस्था में सम्मिलित हुए, जो चर्च ऑव साउथ इंडिया कहलाती है और ऐंग्लिकन समुदाय से संबद्ध नहीं है); द चर्च ऑव द प्राविंस ऑव साउथ अफ्रीका; द ऐंग्लिकन चर्च ऑव कनाड़ा; द चर्च ऑव इंग्लैंड इन आस्ट्रेलिया ऐंड तास्मेनिया; द चर्च ऑव द प्राविंस ऑव न्यूज़ीलैंड; द चर्च ऑव प्राविंस ऑव वेस्ट इंडीज़; द होली काथलिक चर्च इन चाइना; जापान होली काथलिक चर्च; द चर्च ऑव द प्राविंस ऑव वेस्ट अफ्रीका; द चर्च ऑव द प्राविंस ऑव सेंट्रल अफ्रीका; आर्चबिशप्रिक ऑव द मिडल ईस्ट। इसके अतिरिक्त कुछ प्रांत पूर्ण रूप से संगठित नहीं है, वे प्राय: कैंटरबरी से संबद्ध हैं। आजकल संसार भर में लगभग लगभग पाँच करोड़ ईसाई ऐंग्लिकन समुदाय के अनुयायी हैं।
 
==संगठन==
===चर्च ऑफ़ इंग्लैंड===
===कैंटरबरी के आर्चबिशप===
 
==इन्हें भी देखें==
* [[इंग्लैंड का कलीसिया]]
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==सन्दर्भ ग्रन्थ==