"आंग्लिकाई ऐक्य": अवतरणों में अंतर

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[[हेनरी अष्टम]] के राज्यकाल (सन् १५०९-१५५७ ई.) में लूथर ने जर्मनी में [[प्रोटेस्टैंट धर्म]] चलाया। इसके विरोध में हेनरी अष्टम ने १५२१ ई. में एक ग्रंथ लिखा जिसमें उन्होंने रोम के बिशप (पोप) के ईश्वरदत्त अधिकार का प्रतिपादन किया। इसपर हेनरी को रोम की ओर से धर्मरक्षक की उपाधि मिली (यह आज तक इंग्लैंड के राजाओं की उपाधि है)। बाद में पोप ने हेनरी का प्रथम विवाह अमान्य ठहराने तथा इसको दूसरा विवाह कर लेने की अनुमति देने से इंकार किया। इसके परिणामस्वरूप पार्लियामेंट ने हेनरी के अनुरोध से एक अधिनियम स्वीकार किया जिसमें राजा को [[चर्च ऑफ़ इंग्लैंड]] का परमाधिकारी घोषित किया जाता था। (ऐक्ट ऑफ सुप्रिमेसी १५३१-ई.)। इस महत्वपूर्ण परिवर्तन के बाद [[हेनरी अष्टम]] ने जीवन भर प्रोटेस्टैंट विचारों का विरोध कर काथलिक धर्म सिद्धांतों को अक्षुण्ण बनाए रखने का सफल प्रयास किया। [[चर्च ऑफ़ इंग्लैंड | इंग्लैंड के कलीसिया]] का [[यूनाइटेड किंगडम में राज-परमाधिकार | परमाधिकारी]] होने के नाते उसने मठों की संपत्ति अपनाकर उनका उन्मूलन किया।
 
[[एडवर्ड षष्ठषष्ठम]] के राज्यकाल (सन् १५५७-१५५३ ई.) में क्रैन्मर के नेतृत्व में ऐंग्लिकन चर्च का काथलिक स्वरूप बहुत कुछ बदल गया तथा 'बुक ऑफ कामन प्रेयर' में बहुत से प्रोटेस्टैंट विचारों का सन्निवेश किया गया (इसका प्रथम संस्करण सन् १५४९ ई. में स्वीकृत हुआ, दूसरा परिवर्तित संस्करण सन् १५५२ ई. में प्रकाशित हुआ)।
 
अपने भाई एडवर्ड के निधन पर मेरी ट्यूडर ने कुछ समय तक (सन् १५५३-५८ ई.) रोमन काथलिक चर्च के साथ चर्च ऑव इंग्लैंड का संपर्क पुन: स्थापित किया किंतु उसकी बहन एलिज़ाबेथ (सन् १५५८-१६०३ ई.) ने चर्च ऑव इंग्लैंड को पूर्ण रूप से स्वतंत्र तथा राष्ट्रीय चर्च बना दिया। सर्वप्रथम अपने एक नए अधिनियम द्वारा अपने पिता हेनरी अष्टम की भाँति अपने को चर्च ऑव इंग्लैंड पर परमाधिकार दिलाया (ऐक्ट ऑव सुप्रिमेसी-सन् १५५९ ई.) तथा एक दूसरे अधिनियम द्वारा एडवर्ड का द्वितीय बुक ऑव कामन प्रेयर अनिवार्य ठहरा दिया। (ऐक्ट ऑव यूनिफ़ार्मिटी-सन् १५५९ ई.)। इतने में चर्च ऑव इंग्लैंड के सिद्धांतों के सूत्रीकरण का कार्य भी आगे बढ़ा और १५६२ ई. में पार्लियामेंट तथा १५६३ ई. में महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा ३९ सूत्र (थर्टीनाइन आर्टिकिल्स) अनुमोदित हुए। इन सूत्रों पर लूथर के विचारों का प्रभाव स्पष्ट है।