'रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है।<ref>संस्कृत-हिन्दी कोश, वामन शिवरामशिवरामजी आप्टे।</ref> 'रम्' धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से सम्बद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में 'रमण' (निवास) करते हैं, इसलिए 'राम' हैं तथा भक्तजन उनमें 'रमण' करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे 'राम' हैं। '[[विष्णुसहस्रनाम]]' पर लिखित अपने भाष्य में आद्य [[शंकराचार्यशंकराचार्यजी]] ने [[पद्मपुराण]] का हवाला देते हुए कहा है कि ''नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे 'राम' हैं।''<ref>श्रीविष्णुसहस्रनाम, सानुवाद शांकर भाष्य सहित, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-1999, पृष्ठ-143.</ref>