"मुद्रा (करंसी)": अवतरणों में अंतर

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:: मुद्रा = नोट + सिक्के + मांग जमा + समय जमा + बचत बैंक जमा + शेयर बाण्ड + असंगाठित क्षेत्रों द्वारा जारी की गई साख
 
इरंविग फिशर ने सन् 1911 में अपनी पुस्तक The Purchasing Power foof Money में मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि मुद्र की पूर्ति तथा कीमत स्तर के बीच प्रत्यक्ष तथा आनुपातिक सम्बन्ध होता है। अगर मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है तो कीमत स्तर में भी वृद्धि होती है और अगर मुद्रा की पूर्ति कम होती है तो कीमत स्तर भी कम होता है फिशर ने मुद्रा की पूर्ति को सक्रिय तथा कीमत स्तर के निर्धारण में मुद्रा की मांग को अधिक महत्वपूर्ण माना है। परम्परावादी अर्थशास्त्री मुद्रा के केवल विनिमय माध्यम की बात करते है तथा कैम्ब्रिज अर्थशास्त्रियों ने बताया कि मुद्रा को संचय भी कर सकते हैं। केन्ज ने बताया कि मुद्रा की मात्रा तथा कीमत स्तर के बीच अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन होने के फलस्वरूप सबसे पहले ब्याज की दर में परिवर्तन होता है और ब्याज की दर में परिवर्तन होने से निवेश प्रभावित होता है और फिर आय, उत्पादन, रोजगार बढ़ता है। केन्ज के अनुसार पूर्ण रोजगार से पहले मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर उत्पादन तथा कीमतें दोनों बढ़ती है परन्तु पूर्ण रोजगार के बाद मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने पर केवल कीमतें हीं बढ़ती है।
 
== मुद्रा के कार्य ==