"व्यवहारवाद": अवतरणों में अंतर

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'''व्यवहारवाद''' (बिहेवियरिज़म) के अनुसार [[मनोविज्ञान]] केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में '''व्यवहारवाद''' (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में [[जे.बी. वाटसन]] द्वारा 1913 में [[जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय]] में की गयी। उन दिनों मनोवैज्ञानिकों से माँग की जा रही थी कि वे आत्म-विश्लेषण की तकनीक विकसित करें। वाटसन का कहना था कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी भीतरी और निजी अनुभूतियों पर आधारित नहीं होता। वह अपने माहौल से निर्देशित होता है। मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए किसी बाह्य उत्प्रेरक के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया का प्रेक्षण करना ही काफ़ी है। वाटसन के इस सूत्रीकरण के बाद व्यवहारवाद अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रमुखता प्राप्त करता चला गया। एडवर्ड हुदरीगुथरी, क्लार्क हुल और बी.एफ़. स्किनर ने व्यवहारवाद के सिद्धांत को अधिक परिष्कृत स्वरूप प्रदान किया। इन विद्वानों की प्रेरणा से मनोचिकित्सकों ने व्यवहारमूलक थेरेपी की विभिन्न तकनीकें विकसित कीं ताकि मनोरोगियों को तरह-तरह की भीतोंभूतों और उन्मादों से छुटकारा दिलाया जा सके।
 
इस सम्प्रदाय (स्कूल) की स्थापना [[संरचनावाद]] तथा [[प्रकार्यवाद]] जैसे सम्प्रदायों के विरोध में वाटसन द्वारा की गयी। यह स्कूल अपने काल में (विशेषकर 1920 ई0 के बाद) अधिक प्रभावशाली रहा जिसके कारण इसे मनोविज्ञान में 'द्वितीय बल' के रूप में मान्यता मिली। वाटसन ने 1913 में [[साइकोलाजिकल रिव्यू]] में एक विशेष शीर्षक "व्यवहारवादियों की दृष्टि में मनोविज्ञान" (Psychology as the behouristics view it) के तहत प्रकाशित किया गया। यहीं से व्यवहारवाद का औपचारिक आरम्भ माना जाता है।