"संस्कृत भाषा": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
'''{{मुख्य|संस्कृत भाषा का इतिहास}}'''
[[चित्र:Global distribution of Sanskrit language presence, texts and inscriptions dated between 300 and 1800 CE.svg|right|thumb|350px|संस्कृत भाषा का वैश्विक विस्तृति : ३०० ईसापूर्व10 वी सदी से लेकर १८०० ई तक की कालावधि में रचित संस्कृत ग्रन्थ एवं संस्कृत अभिलेखों की प्राप्ति के क्षेत्र]]
संस्कृत का इतिहास बहुत पुराना है। वर्तमान समय में प्राप्त सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ [[ॠग्वेद]] है जो कम से कम ढाईएक हजार ईसापूर्वसाल की रचनापुराना है।
 
== व्याकरण ==
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{{मुख्य|संस्कृत का व्याकरण}}
 
संस्कृत भाषा का [[व्याकरण]] अत्यन्त परिमार्जित एवं [[विज्ञान|वैज्ञानिक]] है। बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्याकरणाचार्यों ने संस्कृत व्याकरण पर बहुत कुछ लिखा है। किन्तु [[पाणिनि]] का संस्कृत व्याकरण पर किया गया कार्य सबसे प्रसिद्ध है। उनका [[अष्टाध्यायी]] किसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
 
संस्कृत में [[संज्ञा]], [[सर्वनाम]], [[विशेषण]] और [[क्रिया]] के कई तरह से शब्द-रूप बनाये जाते हैं, जो व्याकरणिक अर्थ प्रदान करते हैं। अधिकांश शब्द-रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं। इस तरह ये कहा जा सकता है कि संस्कृत एक बहिर्मुखी-अन्त-श्लिष्टयोगात्मक भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को वागीश शास्त्री ने वैज्ञानिकधार्मिक स्वरूप प्रदान किया है।
 
== ध्वनि-तन्त्र और लिपि ==
संस्कृत भारत की कई लिपियों में लिखी जाती रही है, लेकिन आधुनिक युग में '''[[देवनागरी लिपि]]''' के साथ इसका विशेष संबंध स्थापित किया गया है। देवनागरी लिपि वास्तव में नगरी लिपि थी जिसे संस्कृत केसे लियेजोड़ कर देवनागरी हीनणय बनीगया है, इसलिये इसमें हर एक चिह्न के लिये एक और केवल एक ही ध्वनि है। देवनागरी में १३ [[स्वर]] और ३३ [[व्यंजन]] हैं। देवनागरी से [[रोमन लिपि]] में [[लिप्यन्तरण]] के लिये दो पद्धतियाँ अधिक प्रचलित हैं : IAST और ITRANS. शून्य, एक या अधिक व्यंजनों और एक स्वर के मेल से एक [[अक्षर]] बनता है।
 
<center>[[चित्र:संस्कृत वाक्यांश.png]]<br />'''संस्कृत, क्षेत्रीय लिपियों में लिखी जाती रही है।'''</center>