"मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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राष्ट्रकवि '''मैथिलीशरण गुप्त''' (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध [[कवि]] थे। [[हिन्दी साहित्य का इतिहास|हिन्दी साहित्य के इतिहास]] में वे [[खड़ी बोली]] के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं।<ref>[http://hindi.webdunia.com/my-blog/maithilisharan-gupt-117080200079_1.html मैथिलीशरण गुप्त सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय कवि थे]</ref> उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति [[भारत-भारती]] (1912) [[भारत]] के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण [[महात्मा गांधी]] ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी।<ref>[https://www.jagran.com/sahitya/literary-works-3283.html राष्ट्रकवि व उनकी भारत भारती]</ref> उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया।<ref>"[https://www.webcitation.org/6U68ulwpb?url=http://mha.nic.in/sites/upload_files/mha/files/LST-PDAWD-2013.pdf Padma Awards]" (PDF). Ministry of Home Affairs, Government of India. 2015. Archived from the [http://mha.nic.in/sites/upload_files/mha/files/LST-PDAWD-2013.pdf original] (PDF) on 15 November 2014. Retrieved 21 July 2015.]</ref>
 
[[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने [[खड़ी बोली]] को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह [[ब्रजभाषा]] जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो '[[पंचवटी]]' से लेकर '[[जयद्रथ-वध|जयद्रथ वध]]', '[[यशोधरा]]' और '[[साकेत]]' तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। 'साकेत' उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है।