"हिन्दू धर्म में गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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'''गौतम बुद्ध''' को भी [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[वैष्णव सम्प्रदाय]] में को [[भगवान विष्णु]] का [[अवतार]] माना जाता है। तथापि हिन्दू ग्रंथों में जिन बुद्ध की चर्चा हुई है उनकी भिन्नता शाक्य मुनि (गौतम) से प्रदर्शित है।
[[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[वैष्णव सम्प्रदाय]] में [[गौतम बुद्ध]] को [[भगवान विष्णु]] का [[अवतार]] माना जाता है। हिन्दू धर्म में वर्णित दशावतार में वर्तमान में ९वा अवतार बुद्ध को माना जाता है। भविष्य में अंतिम कल्कि अवतार होगा।[[चित्र:Viṣṇu_as_Buddha_making_gesture_of_dharmacakrapravartana_flanked_by_two_disciples.jpg|अंगूठाकार|394x394पिक्सेल|गौतम बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में]]बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख [[पुराण|पुराणों]] तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। किन्तु सभी एक ही 'बुद्ध' के बारे में हों, ऐसा सम्भवतः नहीं है। किन्तु इन ग्रन्थों में से अधिकांश स्पष्टतः बौद्ध मत के प्रवर्तक 'बुद्ध' की ही बात करते हैं। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- धर्म की पुनः स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा। नीचे उन कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है-
 
"बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति" (श्रीमद्भागवत)
 
इस भागवतोक्त श्लोकानुसार बुद्ध के पिता का नाम अजन और उनका जन्म प्राचीन [[उड़ीसा]] अर्थात् कीकट में हुआ था। जबकि गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन तथा जन्म वर्तमान नेपाल में हुआ था।
कई तथ्यों की मानें तो संयोग मात्र इतना था कि जिस बोधिवृक्ष के नीचे भगवान् बुद्ध ने तप किया, उसी के नीचे गौतम ने भी तप किया जिस कारण उनका भी नाम बुद्ध पड़ गया।<ref>[naidunia.jagran.com/lite/spiritual/kehte-hain-so-what-were-2-buddha-743598]</ref>
 
[[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[वैष्णव सम्प्रदाय]] में [[गौतम बुद्ध]] को [[भगवान विष्णु]] का [[अवतार]] माना जाता है। हिन्दू धर्म में वर्णित दशावतार में वर्तमान में ९वा अवतार बुद्ध को माना जाता है। भविष्य में अंतिम कल्कि अवतार होगा।[[चित्र:Viṣṇu_as_Buddha_making_gesture_of_dharmacakrapravartana_flanked_by_two_disciples.jpg|अंगूठाकार|394x394पिक्सेल|गौतम बुद्ध, विष्णु के अवतार के रूप में]]बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख [[पुराण|पुराणों]] तथा सभी महत्वपूर्ण हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। किन्तु सभी एक ही 'बुद्ध' के बारे में हों, ऐसा सम्भवतः नहीं है। किन्तु इन ग्रन्थों में से अधिकांश स्पष्टतः बौद्ध मत के प्रवर्तक 'बुद्ध' की ही बात करते हैं। इन ग्रन्थों में मुख्यतः बुद्ध की दो भूमिकाओं का वर्णन है- धर्मकलयुगीय अधर्म की पुनः स्थापना के लिये नास्तिक (अवैदिक) मत का प्रचार तथा पशु-बलि की निन्दा। नीचे उन कुछ पुराणों में बुद्ध के उल्लेख का सन्दर्भ दिया गया है-
 
[[हरिवंश पर्व]] (1.41)