हमने इसमे कीर्तन को विस्तृत कीया है।
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भागवत में वेदव्यास जी लिखते है।..॥
वाणी गुणानुकथनों श्रावणौ कथायं
हस्तौ च कर्मशु ,मनस्तवपड़्योर्ण हे प्रभु वाणी से आपका भजन करू कानो से आपका अलौकिक भजन कीर्तन सुनू हाथों से आपकी सेवा करु,ये सिष हरदम आपक़े चरणों में झुके,नारदीय कीर्तन भी कीर्तन का एक प्रकार है जिसमें दवर्षी नारद की शैली चलते फिरते हरिगुण गान
 
== इन्हें भी देखें ==