"मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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:'' व्यस्त रहेंगे, हम सब को भी, मानो विवश विसारेंगे।
:'' कर विचार लोकोपकार का, हमें न इससे होगा शोक;
:'' पर अपना हित आप नहीं क्या, कर सकता है यह नरलोक! <ref> {{cite web|url=http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%81_%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A4%A3_%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4|title=चारुचन्द्र की चंचल किरणें|work=kavitakosh.org|accessdate=20 अप्रैल 2019}} </ref>
:'' पर अपना हित आप नहीं क्या, कर सकता है यह नरलोक!
 
==सन्दर्भ==