"मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 44:
 
== जीवन परिचय ==
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में [[उत्तर प्रदेश]] में [[झांसी]] के पास [[चिरगांव]] में हुआ। <ref> {{cite web|url=http://sahityasadansetuprakashan.com/wp-content/uploads/2018/06/MSG-LIFE-SCETCH1-768x1010.jpg|title=मैथिली शरण गुप्त की जीवन रेखा|work=sahityasadansetuprakashan.com|accessdate=20 अप्रैल 2019}} </ref> माता और पिता दोनों ही [[वैष्णव]] थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। रामस्वरूप शास्त्री, दुर्गादत्त पंत, आदि ने उन्हें विद्यालय में पढ़ाया। घर में ही [[हिन्दी]], [[बंगला]], [[संस्कृत साहित्य]] का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। १२ वर्ष की अवस्था में [[ब्रजभाषा]] में '''कनकलता''' नाम से कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक "[[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]]" में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई।
 
प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" तथा बाद में "जयद्रथ वध" प्रकाशित हुई। उन्होंने [[बांग्ला|बंगाली]] के काव्य ग्रन्थ "मेघनाथ वध", "ब्रजांगना" का अनुवाद भी किया। सन् 1912 - 1913 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत "[[भारत भारती]]" का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। [[संस्कृत]] के प्रसिद्ध ग्रन्थ "[[स्वप्नवासवदत्ता]]" का अनुवाद प्रकाशित कराया। सन् १९१६-१७ ई. में महाकाव्य '[[साकेत]]' की रचना आरम्भ की। [[उर्मिला]] के प्रति उपेक्षा भाव इस ग्रन्थ में दूर किये। स्वतः प्रेस की स्थापना कर अपनी पुस्तकें छापना शुरु किया। साकेत तथा पंचवटी आदि अन्य ग्रन्थ सन् १९३१ में पूर्ण किये। इसी समय वे राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी|गांधी]] जी के निकट सम्पर्क में आये। 'यशोधरा' सन् १९३२ ई. में लिखी। [[महात्मा गांधी|गांधी जी]] ने उन्हें "राष्टकवि" की संज्ञा प्रदान की। 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन् 1948 में [[आगरा विश्वविद्यालय]] से उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया। १९५२-१९६४ तक [[राज्यसभा]] के सदस्य मनोनीत हुये। सन् १९५३ ई. में [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ [[राजेन्द्र प्रसाद]] ने सन् १९६२ ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय|हिन्दू विश्वविद्यालय]] के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। वे वहाँ मानद प्रोफेसर के रूप में नियुक्त भी हुए। [[१९५४]] में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया। [[चिरगाँव]] में उन्होंने १९११ में [http://sahityasadansetuprakashan.com/ '''साहित्य सदन'''] नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की और झांसी में १९५४-५५ में '''मानस-मुद्रण''' की स्थापना की।