"नोटा": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
[[File:NOTA Option Logo.png|right|thumb|नोटा]]
 
'''नोटा''' का अर्थ है- नन ऑफ द एबव, यानि इनमें से कोई नहीं।
2015 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ।{{cn}}
पंक्ति 5:
ईवीएम में नोटा की व्यवस्था से परिणाम पर कोई असर नहीं | url=http://www.livehindustan.com/news/election/news/article1-story-112-112-370525.html | publisher=www.livehindustan.com | date=15-अक्तूबर-13 }} </ref>,
2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला। हरियाणा में दिसंबर २०१८ में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने निर्णय लिया कि नोटा के विजयी रहने की स्थिति में सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तथा चुनाव पुनः कराया जाएगा।<ref> https://www.bhaskar.com/national/news/nota-more-powerful-in-haryana-now-nota-will-cont-fictional-candidate-01319632.html दैनिक भास्कर</ref><ref>https://www.ndtv.com/india-news/in-haryana-municipal-elections-nota-to-be-a-fictional-candidate-1951986 एनडीटीवी</ref> इससे पहले ऐसी स्थिति में द्वितीय स्थान पर रहे प्रत्याशी को विजयी माना जाता था।
 
नोटा के प्रचार-प्रसार हेतु चुनाव आयोग और राजनैतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भी रूचि नहीं ली है। विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर ने मतदाता विवेकाधिकार मंच के तहत नोटा के प्रचार हेतु काम किया है। मतदाता विवेकाधिकार मंच के संयोजक आचार्य संजीव वर्मा सलिल ने ब्लॉग, फेसबुक और वाट्सएप पर विविध विधाओं में नोटा सम्बन्धी रचनाएँ लिख कर पूरे देश में मतदाताओं तक भेजी हैं।
 
<nowiki>*</nowiki>
 
सामयिक दोहे
 
अपराधी हो यदि खड़ा, मत करिए स्वीकार।
 
नोटा बटन दबाइए, खुद करिए उपचार।।
 
<nowiki>*</nowiki>
 
जन भूखा प्रतिनिधि करे, जन के धन पर मौज।
 
मतदाता की शक्ति है, नोटा मत की फौज।।
 
<nowiki>*</nowiki>
 
नेता बात न सुन रहा, शासन देता कष्ट।
 
नोटा ले संघर्ष कर, बाधा करिए नष्ट।
 
<nowiki>*</nowiki>
 
त्रिपदिक छंद हाइकु
 
विषय: पलाश
 
विधा: गीत
 
<nowiki>*</nowiki>
 
लोकतंत्र का / निकट महापर्व / हावी है तंत्र
 
<nowiki>*</nowiki>
 
मूक है लोक / मुखर राजनीति / यही है शोक
 
पूछे पलाश / जनता क्यों हताश / कहाँ आलोक?
 
सत्ता की चाह / पाले हरेक नेता / दलों का यंत्र
 
<nowiki>*</nowiki>
 
योगी बेहाल / साइकिल है पंचर / हाथी बेकार
 
होता बबाल / बुझी है लालटेन / हँसिया फरार
 
रहता साथ / गरीबों के न हाथ / कैसा षड़्यंत्र?
 
<nowiki>*</nowiki>
 
दलों को भूलो / अपराधी हराओ / न हो निराश
 
जनसेवी ही / जनप्रतिनिधि हो / छुए आकाश
 
ईमानदारी/ श्रम सफलता का / असली मंत्र
 
<nowiki>***</nowiki>
 
संवस
 
७९९९५५९६१८
 
चिंतन :
 
संतान बनो
 
<nowiki>*</nowiki>
 
इसरो के वैग्यानिकों ने देश के बाहरी शत्रुओं की मिसाइलों, प्रक्षेपास्त्रों व अंतरिक्षीय अड्डों को नष्ट करने की क्षमता का सफल क्रियान्वयन कर हम सबको 'शक्ति की भक्ति' का पाठ पढ़ाया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश बाहरी शत्रुओं से बहादुर सेना और सुयोग्य वैग्यानिकों की दम पर निपट सकता है। मेरा कवि यह मानते हुए भी 'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि' तथा 'सम्हल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से' की घुटी में मिली सीख भूल नहीं पाता।
 
लोकतंत्र के भीतरी दुश्मन कौन और कहाँ हैं, कब-कैसे हमला करेंगे, उनसे बचाव कौन-कैसे करेगा जैसे प्रश्नों के उत्तर चाहिए?
 
सचमुच चाहिए या नेताओं के दिखावटी देशप्रेम की तरह चुनावी वातावरण में उत्तर चाहने का दिखावा कर रहे हो?
 
सचमुच चाहिए
 
तुम कहते हो तो मान लेता हूँ कि लोकतंत्र के भीतरी शत्रुओं को जानना और उनसे लोकतंत्र को बचाना चाहते हो। इसके लिए थोड़ा कष्ट करना होगा।
 
घबड़ाओ मत, न तो अपनी या औलाद की जान संकट में डालना है, न धन-संपत्ति में से कुछ खर्च करना है।
 
फिर?
 
फिर... करना यह है कि आइने के सामने खड़ा होना है।
 
खड़े हो गए? अब ध्यान से देखो। कुछ दिखा?
 
नहीं?
 
ऐसा हो ही नहीं सकता कि तुम आइने के सामने हो और कुछ न दिखे। झिझको मत, जो दिख रहा है बताओ।
 
तुम खुद... ठीक है, आइना तो अपनी ओर से कुछ जोड़ता-घटाता नहीं है, सामने तुम खड़े हो तो तुम ही दिखोगे।
 
तुम्हें अपने प्रश्नों के उत्तर मिला?
 
नहीं?, यह तो हो ही नहीं सकता, आईना तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर ही दिखा रहा है।
 
चौंक क्यों रहे हो? हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा और उस खतरे से बचाव का एकमात्र उपाय दोनों तुम ही हो।
 
कैसे?
 
बताता हूँ। तुम कौन हो?
 
आदमी
 
वह तो जानता हूँ पर इसके अलावा...
 
बेटा, भाई, मित्र, पति, दामाद, जीजा, कर्मचारी, व्यापारी, इस या उस धर्म-पंथ-गुरु या राजनैतिक दल या नेता के अनुयायी...
 
हाँ यह सब भी हो लेकिन इसके अलावा?
 
याद नहीं आ रहा तो मैं ही याद दिला देता हूँ। याद दिलाना बहुत जरूरी है क्योंकि वहीं समस्या और समाधान है।
 
जो सबसे पहले याद आना चाहिए और अंत तक याद नहीं आया वह यह कि तुम, मैं, हम सब और हममें से हर एक 'संतान' है। 'संतान होना' और 'पुत्र होना' शब्द कोश में एक होते हुए भी, एक नहीं है।
 
'पुत्र' होना तुम्हें पिता-माता पर आश्रित बनाता है, वंश परंपरा के खूँटे से बाँधता है, परिवार पोषण के ताँगे में जोतता है, कभी शोषक, कभी शोषित और अंत में भार बनाकर निस्सार कर देता है, फिर भी तुम पिंजरे में बंद तोते की तरह मन हो न हो चुग्गा चुगते रहते हो और अर्थ समझो न समझो राम नाम बोलते रहते हो।
 
संतान बनकर तुम अंधकार से प्रकाश पाने में रत भारत माता (देश नहीं, पिता भी नहीं, पाश्चात्य चिंतन देश को पिता कहता है, पौर्वात्य चिंतन माता, दुनिया में केवल एक देश है जिसको माता कहा जाता है, वह है भारत) का संतान होना तुम्हें विशिष्ट बनाता है।
 
कैसे?
 
क्या तुम जानते हो कि देश को विदेशी ताकतों से मुक्त कराने वाले असंख्य आम जन, सर्वस्व त्यागने वाले साधु-सन्यासी और जान हथेली पर लेकर विदेशी शासकों से जूझनेवाले पंथ, दल, भाषा, भूषा, व्यवसाय, धन-संपत्ति, शिक्षा, वाद, विचार आदि का त्याग कर भारत माता की संतान मात्र होकर स्वतंत्रता का बलिवेदी पर हँसते-हँसते शीश समर्पित करते रहे थे?
 
भारत माँ की संतान ही बहरों को सुनाने के लिए असेंबली में बम फोड़ रही थी, आजाद हिंद फौज बनाकर रणभूमि में जूझ रही थी।
 
लोकतंत्र को भीतरी खतरा उन्हीं से है जो संतान नहीं है और खतरा तभी मिलेगा जब हम सब संतान बन जाएँगे। घबरा मत, अब संतान बनने के लिए सिर नहीं कटाना है, जान की बाजी नहीं लगाना है। वह दायित्व तो सेना, वैग्यानिक और अभियंता निभा ही रहे हैं।
 
अब लोकतंत्र को बचाने के लिए मैं, तुम, हम सब संतान बनकर पंथ, संप्रदाय, दल, विचार, भाषा, भूषा, शिक्षा, क्षेत्र, इष्ट, गुरु, संस्था, आहार, संपत्ति, व्यवसाय आदि विभाजक तत्वों को भूलकर केवल और केवल संतान को नाते लोकहित को देश-हित मानकर साधें-आराधें।
 
लोकतंत्र की शक्ति लोकमत है जो लोक के चुने हुए नुमाइंदों द्वारा व्यक्त किया जाता है।
 
यह चुना गया जनप्रतिनिधि संतान है अथवा किसी वाद, विचार, दल, मठ, नेता, पंथ, व्यवसायी का प्रतिनिधि? वह जनसेवा करेगा या सत्ता पाकर जनता को लूटेरा? उसका चरित्र निर्मल है या पंकिल? हर संतान, संतान को ही चुने। संतान उम्मीदवार न हो तो निराश मत हो, 'नोटा' अर्थात इनमें से कोई नहीं तो मत दो। तुम ऐसा कर सके तो राजनैतिक सट्टेबाजों, दलों, चंदा देकर सरकार बनवाने और देश लूटनेवालों का बाजी गड़बडा़कर पलट जाएगी।
 
यदि नोटा का प्रतिशत ५००० प्रतिशत या अधिक हुआ तो दुबारा चुनाव हो और इस चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को आजीवन अयोग्य घोषित किया जाए।
 
पिछले प्रादेशिक चुनाव में सब चुनावी पंडितों को मुँह की खानी पड़ी क्योंकि 'नोटा' का अस्त्र आजमाया गया। आयाराम-गयाराम का खेल खेल रहे किसी दलबदलू को कहीं मत न दे, वह किसी भी दल या नेता को नाम पर मत माँगे, उसे हरा दो। अपराधियों, सेठों, अफसरों, पूँजीपतियों को ठुकराओ। उन्हें चुने जो आम मतदाता की औसत आय के बराबर भत्ता लेकर आम मतदाता को बीच उन्हीं की तरह रहने और काम करने को तैयार हो।
 
लोकतंत्र को बेमानी कर रहा दलतंत्र ही लोकतंत्र का भीतरी दुश्मन है। नेटा के ब्रम्हास्त्र से- दलतंत्र पर प्रहार करो। दलाधारित चुनाव संवैधानिक बाध्यता नहीं है। संतान बनकर मतदाता दलीय उम्मीदवारों के नकारना लगे और खुद जनसेवी उम्मीदवार खड़े करे जो देश की प्रति व्यक्ति औसत आय से अधिक भत्ता न लेने और सब सुविधाएँ छोड़ने का लिखित वायदा करे, उसे ही अवसर दिया जाए।
 
संतान को परिणाम की चिंता किए बिना नोटा का ब्रम्हास्त्र चलाना है। सत्तर साल का कुहासा दो-तीन चुनावों में छूटने लगेगा।
 
आओ! संतान बनो।
 
<nowiki>*</nowiki>
 
 
 
== इन्हें भी देखें==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नोटा" से प्राप्त