"श्रीमद्भगवद्गीता": अवतरणों में अंतर
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{{सन्दूक हिन्दू धर्म}}
मान्यता अनुसार [[
लगभग 20वीं सदी के शुरू में [[गीता प्रेस गोरखपुर]] (1925) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। 20वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का [[जावा की भाषा]] में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। [[श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर]] के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल [[संस्कृत]] के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना [[प्रस्थानत्रयी]] में की जाती है, जिसमें [[उपनिषद्]] और [[ब्रह्मसूत्र]] भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है।
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