"धर्म": अवतरणों में अंतर

भाषा
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
मूल
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
आज का धर्म मूलतः सम्प्रदाय, मजहब, पंथ, रिलीजन का पर्यावाची शब्द बन गया है। जिस वजह से आज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रचलित मान्यता अनुसार सभी सम्प्रदाय, मजहब, पंथ या रिलीजन को धर्म से संबोधन करता है।
धर्म यानी सम्प्रदाय समाज में फैली हुई वह गंदगी है जिसमें मौलाना, पादरी, पंडा, जैसे कीड़े बहुत बड़ी संख्या में बिलबिला रहे हैं जो मानव सभ्यता को अपाहिज बना रहे हैं।
 
धर्म यानी सम्प्रदायआज समाजके सभी सम्प्रदाय में फैली हुई वह गंदगी है जिसमें मौलाना, पादरी, पंडा, जैसे कीड़े बहुत बड़ी संख्या में बिलबिला रहे हैं जो मानव सभ्यता को अपाहिज बना रहे हैं।
 
यह लेख भारतीय दर्शन धर्म के विषय में है। धर्म (सम्प्रदाय, मजहब,पंथ, रिलीजन) के लिए [[धर्म (पंथ)|धर्म (पंथ, मजहब)]] देखें,
 
तथा
 
यह लेख भारतीय दर्शन धर्म के विषय में है। धर्म (पंथ) के लिए [[धर्म (पंथ)]] देखें, तथा धर्म यह एक भारतीय दर्शन भी है उसके लिए [[धर्म (दर्शन )]] देखे।[[चित्र:MonWheel.jpg|right|thumb|300px|[[धर्मचक्र]] (गुमेत संग्रहालय, पेरिस)]]
 
यह लेख भारतीय दर्शन धर्म के विषय में है। धर्म (पंथ) के लिए [[धर्म (पंथ)]] देखें, तथा धर्म यह एक भारतीय दर्शन भी है उसके लिए [[धर्म (दर्शन )]] देखे।[[चित्र:MonWheel.jpg|right|thumb|300px|[[धर्मचक्र]] (गुमेत संग्रहालय, पेरिस)]]
'''धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/धर्म" से प्राप्त